Dr. Bhimrao Ambedkar | डा.भीमराव अम्बेडकर
डा. भीमराव अम्बेडकर का जन्म सन 1891 में महार जाती के मध्य वर्गी परिवार में हुआ था | उन्होंने अपना उच्च शिक्षा मुम्बई तथा कोलम्बिया में पूरा किया | यह बहुत उल्लेखनीय है कि डा. भीमराव अम्बेडकर ने संविधान के निर्माण में बहुत महत्व पूर्ण भूमिका रही है | वे भारत सरकार में कानून मंत्री भी रहे है | सन 1956 में उनका मृत्यु हो गया |
डा. भीमराव अम्बेडकर का जीवन दर्शन
Dr. bhimrao ambedkar का सम्पूर्ण दर्शन राजनीतिक चेतना , समाज सुधार और आध्यात्मिक जागरण से उनका सम्पूर्ण जीवन बिता | कदम कदम पर वे लोगो के आर्थिक स्थिति के बारे में भी विचार करते रहे | मानव के अधिकारों , स्त्री-पुरुष में सामान अधिकार , सामाजिक और आर्थिक न्याय एवं समाज के लोग चारो तरफ से शांति में यकीन रखते थे |
अम्बेडकर ने अपमे जीवन में जाती व्यवस्था की कुरीतियों और ब्राम्हाणवाद के विरुद्ध बहुत संघर्ष किया | वे जाती व्यवस्था को जड़ समेत समाप्त करना चाहते थे | सन 1920 से 1947 तक वे एक अकेला ही व्यक्ति था जो शुद्रो क प्रतिनिधित्व करते रहे | शुद्रो से वे कहा करते थे कि अपने को शुद्र मत समझो | डा. भीमराव अम्बेडकर के लिए शुद्रो का हित एवं उनकी स्वतंत्रता, स्वराज्य की प्राप्ति से कही ज्यादा अधिक महत्वपूर्ण थी |
भीमराव अम्बेडकर के जीवन के उद्देश्य
1.शुद्रो में शिक्षा का प्रचार प्रसार करना |
2.सरकारी नौकरियों में शुद्रो के लिए पद अधिक आरक्षण करना|
3.गावो में शुद्रो की स्थिति में सुधर करना |
डा. भीमराव अम्बेडकर के राज्य विषयक विचार
राज्य का स्वभाविक और स्पष्ट रूप सरकार है | सरकार अपना कार्य अच्छा तरीका से तभी कर सकता है जब जनता उनके आदेशो को माने और लोगो द्वारा सरकार के अदेशो का पालन स्वैच्छिक होना चाहिए | डा. भीमराव अम्बेडकर सविनय अवज्ञा जैसे आदोलन के मत में नही थे | यदि सरकार अन्याय और अत्याचार के रास्ते पर चले तो अम्बेडकर लोगो को विरोध करने का सलाह देते है |
अम्बेडकर ने राज्य के निम्नलिखित कर्तव्य बताये है
- जीवन की स्वतंत्रता,सुख प्राप्ति, भाषण स्वतंत्रता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करणा |
- समाज के दलित वर्ग को अधिक सुविधा देकर सामाजिक राजनीतिकऔर आर्थिक असमानता को दूर करना |
- नागरिको को कमियों और भय से दूर करना |
अम्बेडकर के राजनीतिक चितन में स्वैच्छिक संस्थाओ के लिए गुंजाइश है जो नागरिको के बहुत से उच्छावो को पूरा करते है | इन संस्थाओ के बिना नागरिको का उचित तरीके से विकास नही हो सकता है |
अम्बेडकर के विचारो में धार्मिक स्वतंत्रता और समाजवाद दोनों के दर्शन मिलते है | यही कारण है कि अम्बेडकर एक ऐसे राज्य का निर्माण करना चाहते है जो व्यक्ति के स्वतंत्रता वह उसके गरिमा का सम्मान करते हुए लोगो के कल्याण के मार्ग में काम करे | वे लोगो के स्वतंत्रता को परेशानी में डालना उचित नही समझते है वे कुल मिला कर उदारवादियो की तरह राज्य के सकारात्मक भूमिका को अपनाते है | लोग कल्याणकारी राज्य में ही बहुमुखी विकास एवं सभी लोगो का प्रगति संभव है |
डा. भीमराव अम्बेडकर चाहते थे कि संचालन नियंत्रण व संतुलन सिध्दान्त के अनुसार संसदीय प्रणाली के माध्यम से हो | ताकि शासन के तीनो अंग संयमित एवं सिमित रहे | अल्पसंख्यक के अधिकारों पर होने वाले अतिक्रमण के प्रति जागरूक रहे |डा. भीमराव अम्बेडकर मिल के सामान स्वतंत्रा के परम सेवक थे | इस लिए वे एक उत्तरदायी शासक व्यवस्था के स्थापना हेतु वयस्क की वकालत करते थे | वे मताधिकार हेतु आयु के अतिरिक्त किसी अन्य प्रतिबन्ध के तरफदारी नही करते थे |
डा. अम्बेडकर के लोकतंत्र संबंधी विचार
डा. भीमराव अम्बेडकर सामजिक न्याय के समर्थक होने के करना प्रजातंत्र में उनका बहुत विश्वास था | वे अपने पुरे जीवन में स्वतंत्रता,समानता बधुवताको स्थापित करने हेतु काफी संघर्स किया जो प्रजातंत्र के मूल आधार है | उनका मानना था के प्रजातंत्र के सरकार के सामान न होकर सामाजिक संगठन के स्वरूप में होना चाहिए | अतएव प्रजातंत्र को उच्च वह निम्न पर बिना विचार किये हुए सभी लोगो के कल्याण हेतु काम करना चहिये |
- व्यक्ति अपने आप में एक साध्य है |
- व्यक्ति के कुछ ऐसे अधिकार है जिसे क वादा सविधान को करना चाहिए |
- किसी व्यक्ति को किसी प्रकार के विशिष्ट अधिकार देने की यह शर्त न हो की उसे प्रजातंत्र संवैधानिक अधिकार छोड़ने पड़ेगे |
- राज्य किसी भी व्यक्ति को ऐसे अधिकार नही देगा जिससे वह दुसरो पर शासन करे |
अम्बेडकर का विचार था कि प्रजातंत्र में स्वतंत्रता एवं समानता के द्वारा कोलो में समानता के द्वारा कोलो में समानता स्थापित अहिसात्मक उपायों पर अवलंबित रहे | वे कहते है कि प्रजातंत्र शासन की एक ऐसी की एक ऐसी पध्दति है का नेत्रित्व करता है करता है करता है जिसके अनुसार लोगो के राजनीती ही नही राजनीती ही नही , उनके सामाजिक आर्थिक जीवन बिना रक्त उनके सामाजिक आर्थिक जीवन बिना रक्त रंजित तरीको को अपनाये लोगो के जीवन में अमूल चुक परिवर्तनो को व्यावहारिक रूप प्रदान किया जा सके |अम्बेडकर को प्रजातंत्र संसदीय स्वरूप बहुत पसंद करते थे |
वे संसदीय शासन व्यवस्था के निम्नाकित लक्षणों के कारन भारत के लिए सही मानते थे
1 इसमें शासन का अधिकार वंश के अनुसार नही रहता है |
2 इसमें व्यक्ति विशेष शासन / सत्ता का प्रतिक नही होता है |
3 निर्वाचित प्रतिनिधियों में जनता का विश्वास रहता है कि हमने उसे अपना मत दिया है लोगो के भलाई के लिए काम करेगा |
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