Dudheshwar Mahadev Temple : गाजियाबाद के दुधेश्वर महादेव मंदिर
Dudheshwar Mahadev Temple : इस मंदिर का इतिहास 1000 वर्ष पुराना माना जाता है इस मंदिर में शिव को महादेव के रूप में वर्णित किया गया है | क्योकि उन्हें देवताओ से लेकर असुरो तक सभी ने प्रसन्न किए थे | इंद्र और कुबेर जैसे महान देवता इसके साथ ही हिरण्यकश्यप और रावण जैसे महान राक्षसों ने उनकी पूजा की है |
देश भर में भगवान शिव के बहुत से मंदिर स्थापित है हर एक मंदिर की अपनी एक अलग मान्यता है | उन्ही प्राचीन मंदिरों में से एक है दूधेश्वर नाथ महादेव मंदिर जिसका संबंध रावण काल से जोड़ा जाता है | यह मंदिर आठ मठो में से एक मठ है जहा पर रावण ने अपने 10 सिरों में से पहला सिर को भगवान शिव को यही अर्पित किया था |
दुधेश्वर महादेव मंदिर की मान्यता
इस मंदिर में यहाँ यदि भक्त इकतालीस दिनों तक लगातार आकर स्वयं शिव की पूजा करे तो उनकी मनोकामनाए पूरी होती है | इस Temple के शिवलिंग का ही नही इस मंदिर के नाम का भी गहरा रहस्य है | इस मंदिर का इतिहास लंका पति रावण से जुडा हुआ है | इस मंदिर को लेकर कहा जाता है की यहाँ लंका नरेश रावण के पिता ने कठोर तप किया था |
इस मंदिर से पहले यहाँ पर एक सुरंग थी जो सीधे रावण के गाँव बिसरख और हिडन की तरफ निकलती थी | समय बीतने से साथ इस सुरंग का अस्तित्व ख़त्म होता जाता गया | इस मंदिर में कई संतो ने जीवित समाधी दी है कहते है कि इस मंदिर में शिव जो को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी |
भोले नाथ हर वक्त ध्यान में लीन रहते है ऐसे में नदी भगतो की मनोकामनाए सुनती है | इस मंदिर प्रागं में एक कुआ भी है जिसके पानी का स्वाद कभी मीठा तो कभी गाय के दूध जैसा होता है | हमने मंदिर के इतिहास को गहराई से जानने के लिए बात की रमेश गिरी महाराज से उन्होंने हमें बहुत अच्छी जानकारी दी मंदिर के बारे में |
रमेश गिरी जी महाराज से बात चीत
यह संवत 1511 ईस्वी की बात है | इस मंदिर का जो क्षेत्र है वो पूरा जंगल हुआ करता था पहले के समय में ऋषी मुनी तपस्या करने जाते ही है | तो रावण के पिता विष्णु शर्मा जो थे उन्होंने यहाँ तपस्या की तपस्या के दौरान स्वम्भू शिवलिंग यह प्रकट हुई | इस क्षेत्र में चारो तरफ जंगल हुआ करता था यहाँ एक छोटा सा गाँव भी हुआ करता था जिसका नाम था केला भट्टा | इस गाँव के चरवाहे सभी लोग इकट्ठे हो कर गाँव के सभी गयो को चराने जाया करते थे | तो गया स्वयं यहाँ आ कर के दूध दे कर चली जाती थी |
तो गाँव वालो ने सोचा की पता नही दूध कौन चुराता है गयो का दूध कौन निकलता है तो उन्होंने छुप कर यहाँ देखा तो गाय स्वतः खड़े हो करके दूध दे रही है और चली जाती है | तो सब गाँव वाले इकट्ठे हुए और जब उन्होंने देखा की भगवान शिव प्रगट हुए है यहाँ पर जल स्रोत भी बह रहा है तो उन्होंने और खुदाई की तो यहाँ पर एक कुआ भी निकला जो एक पुराणिक कुआ है | यह कुआ जल स्रोत का स्वरूप है उसको देखते हुए सभी लोग इकठ्ठा हो कर उस समय क्षत्र पति शिवा जी द्वारा इस Temple का जीर्णोधार करवाया गया |
यहाँ जब शक्ति प्रगट हुई तो इसको देख कर स्वयं शिवा जी इसका जीर्णोधार करवाया गया | उन्होंने ही इस पूरी Temple का निर्माण करवाया और सब लोग इकठ्ठा हो कर के पूजा पाठ करना प्रारंभ कर दिया | तो भगावन शंकर अपने साक्षात रूप में विराज मान हो गए | उस समय से ही सभी संतो का आना यहाँ शुरु हुआ | यहाँ पर परम श्री 1008 श्री मेहनत नारायण गिरी जी महाराज यहाँ के दूधेश्वर नाथ मठाधीश्वर यहाँ पर वर्तमान में मौजूद है | मै उनका शिष्य रमेश गिरी महाराज उनका शिष्य भी हु |
भगवान शंकर की आरती का समय
मै एक प्रतिनिधि के रूप में इस Temple का देख भाल भी करता हु और उसके साथ मै यहाँ पर रह भी रहा हु | अभी के समय में यहाँ लोग रात के 2 बजे आ जाते है और मंदिर की धुलाई करते है | सुबह ही भगवान शंकर जी का आरती होती है | सुबह के 3 बज कर 40 मिनट में भगवान शंकर का शंखनाद के साथ सुबह आरती होती है और साम के समय में भी आरती होती है | सोमवार के दिन भगवान शंकर का भव्य आरती होती है |
मंदिर के दर्शन के लिए लोगो की भीड़
इस Temple के दर्शन के लिए दूर दूर से लोग आते है जो लोग इस मंदिर में नही आ पाते है और मंदिर के बहार से भगवान का नाम लेकर उसको नमन कर ले यह स्वयं भू उप जोतिर लिंग है आज भी लोगो की मनो कमाए पूरी होती है नवरात्रि के समय में तो यहाँ पर लाखो आदमी की भीड़ लगी रहती है |
पिछली बार इतवार की शिवरात्रि पड़ी थी अगले दिन सोमवार पाड गया | दिन के 48 घंटे भगतो का कतार यहाँ पर लगा रहा | जिसके चलते 2 दिन भगवान के शिवलिंग पर बराबर जल चढ़ता रहा |
इस मंदिर में एक मिनट के लिए भी समय नही था ऐसी बाबा की कृपा है और भगवान के ऊपर लोगो को बहुत विश्वास है | इस मंदिर में 15 समाधिया है जिसमे दो समाधिया जीवित रूप में है एक समाधी है इलाइची महाराज की उस पर कोई 5 इलाइची चढ़ा देता है और संकल्प के लेता है उसकी मनोकामाए भगवान शंकर जरुर पूर्ण करता है |
मंदिर में कुए से जुडी बाते
इस Temple का जल कभी ख़राब नही होता है ऐसे ही रूप में आज भी इस कुए के अन्दर जल है इस कुए की बहुत गहराई है इस कुए का कोई अंत नही पाया गया है | क्योकि यह प्राचीन समय का कुआ है आज भी यह कुआ भगवान की शक्ति का रूप में है |
दूधेश्वर नाथ विद्या पीठ आज भी 8 विद्या पीठो में से एक है यहाँ पर आज भी विद्याथियो को संस्कृत सिखाया जाता है कहते है की वेद मानव का सबसे पुराना लिखित दस्ता वेज है यहाँ के जो विद्याथी है वो अपने संस्कृति को आज भी अपने दिल में बसाए हुए है |
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