September 8, 2024
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mamta mayi mini mata : ममता मयी मिनी माता जयंती छत्तीसगढ़

mamta mayi mini mata : ममता मयी मिनी माता जयंती छत्तीसगढ़
mamta mayi mini mata : ममता मयी मिनी माता जयंती छत्तीसगढ़

 

mamta mayi mini mata | मिनी माता छत्तीसगढ़ 

दोस्तों आज हम जानेंगे छत्तीसगढ़ की गुरु माता कही जाने वाली ममता मयी मिनी माता के बारे में इन्होने छत्तीसगढ़ के कल्याण के लिए बहुत से कार्य किये है | वे समाज सेविका थी जिन्होंने लोगो के कयां के लिए अपने जीवन को न्यौछावर कर दिया| उन्होंने छत्तीसगढ़ के अन्दर मौजूद अनेक बुराईयों के खिलाफ आवाज उठाया और उनको दूर भी किया |

उनका वस्तिका नाम मीनाक्षी देवी था उनका जन्म स्थान नवागाव असं था उनका जन्म 15 मार्च 1916 में हुआ | उनके पिता जी का नाम श्री महंत बुधारि दास और उनकी माता का नाम श्रीमती देवमती बाई था | ममता मयी मिनी माता जी की शादी गुरु अगमदास जी हुयी | और वे 11 अगस्त 1972 को पृथ्वी लोक छोड़ कर परमात्मा के पास चली गयी |

ममता मयी मिनी माता
ममता मयी मिनी माता

 

जन्म पूर्व घटना

मीनाक्षी देवी अर्थात मिनी माता का जन्म असम राज्य के नावगाव में 15 मार्च 1916 को हुआ था | दोस्त आप सोच रहे होंगे की मिनी माता असम राज्य में जन्मी थी तो वे छत्तीसगढ़ कैसे पहुची ? तो हम आपको बता दे की ममता मयी मिनी माता जी का सम्बन्ध छत्तीसगढ़ से ही था किन्तु कुछ परिस्थितियों की वजह से उनके परिवार को छत्तीसगढ़ से असम जाना पड़ा |

की ऐसा कहा जाता है की आकाल किसी भी राजा को रंक बना देता है और ऐसा हुआ भी | बात है वर्ष 1897 से लेकर 1899 की इस समय छत्तीसगढ़ में भयकर आकाल पड़ा था तब इन दो सालो में ऐसा सुखा पड़ा की किसान खाने के लिए दाने दाने के लिए मोहताज हो गया था | लोगो का पलायन एक शहर से दुसरे शहर में दुसरे शहर से अन्य राज्यों में होने लगा था |

ऐसे ही तब बिलासपुर जिले के पंडरिया की पास के गाव सगोना के एक मालगुजार थे अघारिदास महंत , जिन्होंने भी प्रकृति के इस कहर से बचने के लिए पलायन करना पड़ा |अघारी दास जी को एक ठेकेदार ने आश्वासन दिया की असं के चाय बागन में उन्हें काम दिलवा देगा | तो इस तरह मिनी माता का परिवार अच्छे भविष्य की कामना करते हुए अपनी पत्नी बुधियारिन और 3 बेटियों के साथ जाने के लिए राजी हो गये |

उनकी तीनो बेटियों का नाम चाउरामती , पार्वती और देवमती था | उनके लिए विपत्ति क समय टला नही था उनके भाग्य को तो कुछ और ही मंजूर था पलायन के समय कलकत्ता पहुचने से पहले ही पारबती का निधन हो गया | उनके पार्थिव शारीर को अघारिदास ने अपनी कांपती हाथो से गंगा नदी में प्रवाहित करना पड़ा | विपत्ति की यह घडी अभी काम भी नही हुयी थी की उसकी दूसरी पुत्री चाउरमती की भी मृत्यु हो गयी | यह घटना अघारिदास और बुधियारीन के लिए किसी बड़े सदमे से काम नही था | और यह दोनों घटनायो के कारन से उनका भी स्वाथ्य ख़राब हो गया |

असं पहुचने के बाद उन्होंने चाय के बागन में तो काम हासिल कर लिया किन्तु उनकी पत्नी बुधियारिन जी का स्वास्थ्य दिनों दिन बिगड़ता जा रहा था | और एक दिन उन्होंने अपना शारीर त्याग दिया | यह अघारिदास जी के लिए बहुत ही बड़ी छती थी | इस घटना से उन्हें पार पाने में में बहुत कठिनाई हुयी | और वे अपने पीछे अपनी पुत्री को छोड़ के परमात्मा के पास चले गये  | उस समय देवमती की आयु केवल 6 वर्ष की थी | 6 साल की देवमती को एक दयालु परिवार का सहारा मिला जिन्होंने उस बच्ची का इलाज करवाया |

उन्होंने देवमती को पढ़ाया, लिखाया और काम भी सिखाया जिससे की देवमती को चाय के बागन में काम मिल गया कुछ देनो बाद देव मति का विवाह बुधारिदास जी से हो गया |

मिनी माता का जीवन परिचय 

15 मार्च 1916 की रात देवमती के घर एक ऐसी कन्या का जन्म हुआ जिन्होंने न सिर्फ अपने परिवार का नाम रोशन किया बल्कि आगे चलकर पुरे देश में फैले कुर्तियो का भी नाश किया | इस कन्या का नाम मीनाक्षी देवी था | जिसे लोग प्यार से मिनी के नाम से पुकारते थे | मिडिल स्कूल तक की शिक्षा मिनी असम से प्राप्त की जो उनके जीवन का मिल का पत्थर शाबित हुयी | 1920 के आते आते देश में स्वराज्य आन्दोलन शुरू हो गया |

जिनका अमित छाप मिनी पता के में भी पड़ने लगा था | गांधी जी के द्वारा चलये जाने वाले स्वदेशी अभियान में सम्मिलित हुयी इस अभियान से जुड़ने के बाद से ही मिनीमाता जी ने स्वदेशी कापडे धारण करना सुरु क्र दिया |

मिनी माता
मिनी माता

 

मिनी माता बनाने तक का सफ़र 

गुरु अगम दास जी छत्तीसगढ़ के एक प्रसिद्ध व्यक्ति थे जिनका सतनाम समाज में काफी प्रभाव था , जिनके करण उनके घर में तब के स्वतंत्रता सेनानियों का जमावड़ा लगा रहता था और काफी सुरक्षित भी था | इन सेनानियों का मिनी माता के स्वभाव में भी देखनो मो मिलने लगा था | इन्ही कारणों से उनके मन में भी समाज और देश के लिए कुछ करने की भावना उमड़ने लगी |

जैसे ही लगता है सब कुछ अच्छा चल रहा है विधि का विधान कुछ और सोच कर बैठा होता है | 1954 में गुरु अगम दास जी की मृत्यु के बाद कर्तव्य का सारा बोझ उनके कंधो पर आ गया क्योकि उस समय उनके बेटे विजय कुमार की उम्र काफी काम थी | जो ईस कर्तव्य को उठाने लायक नही हुए थे | मीनाक्षी देवी अपने पारिवारिक दायित्व का अचछे से निवाहन कर रही थी | औरत साथ वो अपने सामजिक दायित्वों का भी बहुत ही अच्चे थांग से निर्वाहन कर रही थी | जिसके कर्ण उनकी प्रसिधी काफी बढ गयी |

वर्ष 1955 के उपचुनाव  में संयुक्त संसदीय क्षेत्र रायपुर , बिलासपुर और दुर्ग में अपना परचम लहराकर छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद बनी | और उन्हें मिनी माता का दर्जा भी मिला |

गुरु अगमदास जी
गुरु अगमदास जी

 

मिनी माता का राजनितिक सफ़र 

  1. 1955 – प्रथम महिला सांसद
  2. 1957 – पुन: सयुक्त संसदीय क्षेत्र रायपुर , बिलासपुर और दुर्ग से जीतकर सांसद बनी
  3. 1962 – बालौदा बाजार क्षेत्र से 52 फीसदी जादा मतों से जीतकर दिल्ली में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया
  4. 1971 – चुनाव में पुन: जांजगीर क्षेत्र से चुनाव जीतकर पांच बार चुनाव जितने का रिकोर्ड बनाया |

 

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