shadani darbar chhattisgarh | शदाणी दरबार
संत सदाराम जी महाराज की पुन्य स्मृति में निर्मित रायपुर स्थित माना में पूज्य शदाणी दरबार तीर्थ आज न केवल छत्तीसगढ़ का बल्कि पुरे भारत में सिन्धु समाज का एक प्रमुख केंद्र माना जाता है | 17 वी शताब्दी के महन संत शदाराम जी का शदाणी दरबार सिन्धु समाज का प्रमुख धार्मिक पर्यटन एवं तीर्थ स्थल है

शदाणी दरबार की स्थिति
शदाणी दरबार रायपुर से 8 किलोमीटर दूर रायपुर – जगदलपुर राष्ट्रिय राजमार्ग पर माना के पास स्थित है | लगभग 12 एकड़ में विस्तृत चार दिवारी से घिरा हुआ मध्य में स्थित शदाणी दरबार मंदिर भव्य एवं कलात्मक है | इस मंदिर का निर्माण सिन्धु संप्रदाय के आठवे गुरु संत गुरुगोबिंद राज जी महाराज ने 1990 में अपनी देख – रेख में करवाया था |
शदाणी दरबार तक छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से निजी वाहन , बस , सिटी बस , टैक्सी आदि की सहायता से बहुत ही आसानी से पहुचा जा सकता है | इस मार्ग में 24 घंटे आवागमन की सुविधा उपलब्ध होती है | यहाँ पर नास्ते आदि के लिए कई अच्छे होटल भी मौजूद है |
शदाणी दरबा की एतिहासिकता
संत शदाराम जी महाराज का जन्म पंजाब प्रान्त के लाहौर शहर में लोहाणा खत्री के घर हुआ था | उनका जन्म 1708 ईस्वी में हुआ था | ये बाल्य अवस्था में ही ईश्वर भक्ति में लीं हो गया था | अपनी अलौकिक शक्ति से लोक कल्याण , परोपकार के कार्य एवं राम नाम का प्रचार करते थे |
कहा जाता है की संत महराज जी लाहौर , सुल्तान में धर्म प्रचार करने के बाद पशुपति नाथ मंदिर , हरिद्वार , दिल्ली , कुरुक्षेत्र , पानीपत पुष्कर राज तीर्थ होकर राजस्थान होते हुए एतिहासिक नगर माथेलो (सिंध) में सन 1768 में पधारे | वे उसी शिव मंदिर में आकर रुके जहा भक्तगण अपने क्रूर शासक गुलाम शाह कल्होड़ा के जुल्मो से छुटकारा दिलाने के लिए प्राथन करते थे |
संत महाराज जी के द्वारा वहा धुनी रमाकर तपस्या करने से वहा का वातावरण सुख – शांति एवं सदाचार से भर गया | हिन्दुओ और मुस्लिमो में एकता और हिम्मत बढती गयी परिणाम हुआ की उस अत्याचारी शासक गुलाम शाह के शासन का अंत हुआ | उनके इस कार्य से हिन्दू – मुस्लिम दोनों प्रभावित हुए और दोनों में आपसी भाई चारे की भावना उत्पन्न हुआ |
और वे संत शदाराम जी शिव अवतारी कहलाने लगे | सन 1786 में संत शदाराम जी हयात पिताफी नामक स्थान पर पधारे और वाही स्थाई डेरा बनाने के उद्देश्य से गव के मध्य में उपरी हिस्से पर शदानी दरबार बनवाया और धुनी जमाकर धर्म कर्म एवं लोक कल्याण में जुट गये | परलोक गमन के पूर्व अपने पर्ण प्रिय शिष्य श्री तुलसीदास जी को आशीर्वाद दिया की जब तक पृथ्वी कायम है , ये स्थान कायम रहेगा और अम्र रहेगा |
जो भी इंसान किसी कष्ट में या बीमारी के समय श्रद्धापूर्वक धुनी अपने मस्तक पर लगाएगा और जल में मिलाकर पिएगा तो उसकी कष्ट तथा बिमारी उनसे दूर हो जाएगी |कहा जाता है की संत शदाराम जी महाराज का आशीर्वाद आज भी इस मंदिर में कायम है |

संतो की सूची
1.प्रथम – संत शदाराम जी साहिब (1708 – 1793)
2.द्वितीय – संत तुलसी दास साहिब (1703 – 1799)
3.तृतीय – संत तखतलाल जी हजुरी साहिब
4.चतुर्थ – संत तनसुखराम साहिब (1804 – 1852)
5.पंचम – माता हासी देवी साहिब
6.षष्ठम – संत मंगलाराम साहिब (1885 – 1932)
7.सप्तम – संत राजाराम साहिब (1882 – 1960)
8.अष्ठम – संत गोविन्द राम साहिब
9.नवम – संत युधिष्ठीरलाला साहिब जो वर्मान में विराज मान है |
अष्ठम गुरु संत गोविन्द राम जी महाराज सन 1969 में पहले पहले पंडरी रायपुर में स्थित पूज्य शदाणी दरबार में पधारे , जो उनके शिष्य ने आदि के देखरेख में 1960 में बनवाया गया है | इनकी पूज्य संत शदाराम की स्मृति में रायपुर स्थित माना में सन 1990 में भव्य शदाणी दरबार का निर्माण करवाया गया |
माना स्थित शदानी दरबार के गर्भ गृह में ही भीतर तथा बाहर दाहिनी बायीं ओर शदानी दरबार के आठ पूर्व परम संतो की संगमरमर से निर्मित जीवित मुर्तिया स्थापित की गयी है |यहाँ 240 वर्ष प्राचीन कलश जो वेड मंदिर माथेला से निकला था , स्थापित है | साथ ही गुरु ग्रन्थ साहिब भी विराज मान है | दाहिने कोने पर पंचम संत पूज्य माता हासी देवी की एतिहासिक खात साहिब विराजमान है |
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