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Togglechaturbhuji bhagawan vishnu ki prachintam bhumi | मल्हार
मल्हार नगर बिलासपुर से दक्षिण – पश्चिम में बिलासपुर से शिवरीनारायण जाने वाली सडक पर स्थित मस्तुरी से 14 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है | बिलासपुर जिले में 2155 अक्षांश उतर एवं देशांतर 8220 पूर्व में स्थित मल्हार में ताम्र पाषण काल से लेकर मध्य काल तक का इतिहास सजीव हो उठता है | कौसम्बी से दक्षिण पूर्व समुद्री तट की ओर जाने वाला प्राचीन मार्ग भरहुत , बांधवगढ़ , अमरकंटक , खरोद , मल्हार तथा सिरपुर होकर जगन्नाथ पूरी की ओर जाता है | मल्हार के उत्खनन में ईसा की दूसरी सदी की ब्राम्ही लिपि में आलेखीत एक मृणमुद्रा प्राप्त हुयी है | जिस पर गामस कोसलिया लिखा है | कोसली या कोसला ग्राम क तादात्म्य मल्हार से १६ किलोमीटर उत्तर पूर्व की ओर स्थित है क कोसला ग्राम से किया जा सकता है |chaturbhuji bhagawan vishnu ki prachintam bhumi
कोसला गाव से पुराना गढ़ प्राचीन तथा परिखा आज भी विद्यमान है , जो उसकी प्राचीनता को मौर्यों के समयुगिन ले जाती है | वहा कुष्णशासक विम्कैडफैसिस का एक सिक्का भी मिला था |
सातवाहन वंश
सातवाहन शासको की गजान्कित मुद्राए मल्हार उत्खनन से प्राप्त हुयी है | रायगढ़ जिला के बालपुर ग्राम से सातवाहन शासक अपिल्क का सिक्का प्राप्त हुआ था | वेदिश्री के नाम की मृणमुद्रा मल्हार से प्राप्त हुयी है | इसके अतिरिक्त सातवाहन कालीन कई अभिलेख गूंजी , किरारी , मल्हार से प्राप्त हुई है | छत्तीसगढ़ क्षेत्र से कुषाण शासक के सिक्के भी मिले है |
शरभपूरी राजवंश
दक्षिण कौशल में कलचुरी वंश के शासक के पहले दो प्रमुख राजवंशो का शासन चल रहा था | वे है शरभपुरी तथा सोमवंशी | इन दोनों वंशो का राज्यकाल लगभग 425 से 655 साल के बीच रखा जा सकता है | यह काल छत्तीसगढ़ के इतिहास का स्वर्ण काल था | धार्मिक तथा ललित कलाओं के क्षेत्र में यह विशेष उन्नति हुयी | इस क्षेत्र में ललित कलाओं के पांच मुख्य केंद्र विकसित हुए –
- मल्हार
- ताला
- सिरपुर
- राजिम
- खरोद
कलचुरी वंश
नवी शती के उत्तरार्द्ध में त्रिपुरी के कलचुरी शासक कोकल्लदेव प्रथम के पुत्र शंकरगन ने डाहल मंडल से कोसल पर आक्रमण किया | पाली पर विजय प्राप्त करने के बाद उसने अपने छोटे भाई को तुम्मान क शासक बना दिया | कलचुरियो को निशाकसित कर दिया | लगभग ई. 1000 में कोकल्लदेव द्वितीय के 18 पुत्र में से एक पुत्र कलिंगराज ने दक्षिण कौसल पर पुन: तुम्मान को कलचुरियो की राजधानी बनाया | कलिंगराज के पश्चात कमलराज , रत्नराज प्रथम क्रमश: कोशल के शासक बने | मल्हार पर सर्वप्रथम कलचुरीवंश क शासन जाजल्लदेव प्रथम के समय में स्थापित हुआ |
मराठा शासन
कलचुरी वंश क अंतिम शासक रघुनाथ सिंह था | ई. 1772 में नागपुर क रघु जी भोसले अपने सेनापति भास्कर पन्त के नेत्रित्व में उड़ीसा तथा बंगाल पर विजय प्राप्त हेतु छत्तीसगढ़ से गुजरा | उसने रतनपुर पर आक्रमण किया तथा उस पर विजय प्राप्त कर ली | इस प्रकार छत्तीसगढ़ से हैहय वंशी कलचुरियो काशासन लगभग सात शताब्दियों पश्चात् समाप्त हो गया |
कला
उत्तर भारत से दक्षिण पूर्व की ओर जाने वाले प्रमुख मार्ग पर स्थित होने के कारन मल्हार क महत्व बढ़ गया | यह नगर धीरे –धीरे विकशित हुआ तथा वहा शैव वंश , वैशनव तथा जैन धर्मावलम्बियों के मंदिर , मठो , मूर्तियों क निर्माण बड़े रूप में हुआ | मल्हार में चतुरभुजि विष्णु की एक अद्वितीय प्रतिमा मिली |उस पर मौर्यकाल ब्रह्म्लिपि में लेख अंकित है | इसका निर्माण काल लगभग ई.पूर्व 200 है | मल्हार तथा उसके समीपवर्ती
क्षेत्र से विशेषत: शैव् मंदिर के अवशेस मिले जिनसे इन क्षेत्र में शैव् धर्म के विशेस उत्थान का पता चला है | इसवी पांचवी से सातवी सदी तक निर्मित शिव , कार्तिकेय गणेश , स्कन्द माता आदि उल्लेखनीय मूर्ति प्राप्त हुयी है |एक शिल्पत्ता पर कच्छप जातक की कथा अंकित है |शिल्पट्टा पर सूखे तालाब से एक कछुए को उड़ाकर जलाशय की ओर ले जाते दो हंश बने हुए है | दूसरी कथा उलूक – जातक की है | इसमें उल्लू को पक्षियों क राजा बनाने के लिए सिहासन पर बैठाया गया है |
उत्खनन :- विगत वर्षो में हुए खनन से मल्हार की संस्कृति का क्रम इस प्रल्कार उभरा है :-
- प्रथम काल – ईसा पूर्व लगभग 1000 से मौर्य काल के पूर्व तक
- द्वितीय काल – मौर्य सातवाहन – कुशान काल ई.पु. 325 से ई. 300 तक |
- तृतीय काल – शरभपुरीय तथा सोमवंशी काल (ई. 300 से ई. 650 तक )
- चतुर्थ काल – परवर्ती सोमवंशी काल (ई. 650 से ई. 900तक)
- पंचम काल – कल्चुरिकाल (ई. 900 से ई. 1300 तक)
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