shrimati usha barale | श्रीमती उषा बारले
छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति की एक अलग ही विशेषता है | जो उसे पुरे देश में सबसे उच्च स्थान प्रदान करती है | छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति एवं लोक गीत की एक अलग ही पहचान है | यहाँ के गीतों के सुर में एक अलग ही मनमोहक सी अनुभूति होती है | छत्तीसगढ़ लोक कला में समृद्ध है यहाँ की कला अन्य राज्यों से अद्वितीय है | यहाँ के तरीके अलग है ये मानव के हृदय को जोडती है |
छत्तीसगढ़ में जब भी सतनाम भजन और पंडवानी का जिक्र होगा तो एक नाम सर्वोपरि होगा वो है पद्मश्री सम्मान विजेयता श्रीमती उषा बारले का नाम सामने आता है | इन्होने छत्तीसगढ़ की लोक कला और संस्कृति को पुरे देश के साथ साथ विश्व में भी डंका बजवाया है | इन्होने संतनाम भजन की कई सारी प्रस्तुतिया देश विदेश में जाकर दी है | उनके स्वर में कुछ अलग सा जादू है जो दर्शको के ,मन को मोह लेती है |
उषा बारले जी का जीवन परिचय
श्रीमती उषा बारले जी का जन्म 2 मई 1968 में छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले के भिलाई में हुआ उनके पिता जी का नाम श्री खाम सिंह जांगडे तथा उनकी माता जी का नाम श्रीमती धनमत बाई था | उषा बारले जी का विवाह बचपन में ही हो गया था , उनका बाल विवाह अमरदास बारले जी से हुआ था | उषा बारले जी ने गुरु मेहतर दास बघेल जी से पंडवानी गायन की शिक्षा लेनी 7 साल की उम्र में ही शुरू कर दी थी | इसके बाद उन्होंने इस कला को और गहराई से सिखने के लिए उस समय की सबसे सफल पंडवानी गायिका श्रीमती तीजन बाई जी के साथ अध्ययन शुरू कर दिया |
उषा बारले जी की गायिकी से उनके पिता जी बहुत ही नाराज थे और उन्होंने एक दिन गुस्से में आकार उन्हें उनके पिता जी ने कुंए में फेक दिया था | उस समय उस कुए में पानी काम होने के कारन उनकी जान बाच गयी | उनके परिजनों ने उन्हें बाल्टी से उन्हें बहार निकाला | | इसके बाद भी उषा बारले जी ने कभी भी हार नही मानी और अपनी गायिकी के क्षेत्र में आगे बदती गयी |
वह बताती है की पंडवानी छत्तीसगढ़ की बहुत ही प्राचीन विधा है | इस विधा में गायन के माध्यम से महाभारत की कथा सुनाई जाती है | उषा बारले जी छत्तीसगढ़ की प्राचीन गहने और वेश भूषा में अपनी हर एक प्रस्तुति देती है और छत्तीसगढ़ के लोक कला संस्कृति को दुनिया के सामने रखती है | उषा बारले जी पंडवानी के अलावा संत शिरोमणि परम पूज्य गुरु घासीदास जी के सतनाम भजन का भी गायन करती है | उन्होंने बाबा जी के उपदेशो को सतनाम भजन के माध्यम के दुनिया के सामने रखने की कोशिश की है |
उषा बारले जी की सबसे पहली प्रस्तुति
उषा बारले जी ने अपनी पहली प्रस्तुति एक पंथी गायिका के रूप में दी थी उन्होंने बचपन से ही पंथी गाना शुरू कर दिया था || उन्होंने पंडवानी शैली ने पंडवानी शैली ने गुरु घासीदास जी की जीवनी सर्वप्रथम प्रस्तुत करने के लिए प्रसंसा की पात्र है |
संघर्ष का समय
उषा बारले जी ने हमारी टीम को बताया की उन्होंने आर्थिक तंगी का भी सामना किया है | उस समय को याद करके उनके आँखे नम हो जाती है | उन्होंने बताया की अपना घर चलने के लिए वे भिलाई सेक्टर – 1 की बस्ती में रहकर केला , संतरा , आदि अन्य फल बेचा करती थी | वह उनके जीवन का बहुत ही संघर्ष का समय था | इसके बाद भी उन्होंने कभी भी हार नही मानी और पंथी एवं पंडवानी गायन को जारी रखा |
उषा बारले जी का विदेश में प्रस्तुति
उषा बारले जी छत्तीसगढ़ , भारत के साथ साथ कई अन्य देशो में भी अपनी कला का लोहा मनवा चुकी है | उषा दीदी ने अमेरिका और लन्दन के 20 से जादा शहरों में अपनी पंडवानी और सतनाम भजन की प्रस्तुति दे चुकी है | इसी तरह वे भारत में रांची , असम , गुवाहाटी , ओड़िसा , महाराष्ट्रा , मध्यप्रदेश आदि राज्यों में अपनी प्रस्तुति दे चुकी है |
पुरस्कार व सम्मान
1.भारत की वर्तमान राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुर्मू जी ने राष्ट्रपति भवन में उषा दीदी जी को पद्मश्री सम्मान से 2023 में सम्मानित किया |
2.इसके पहले 2006 में गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम के अवसर पर में गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम के अवसर पर अपनी प्रस्तुति के लिए उन्हें नयी दिल्ली में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था |
3.उन्हें अंडमान निकोबार द्वीप समूह में सम्मानित किया जा चुका है |
4.छत्तीसगढ़ में उन्हें दाऊ महासिंह चंद्राकर सम्मान . भुइंया सम्मान , चक्रधर सम्मान , मालवा सम्मान आदि उपाधि से नवाजा जा चुका है |
5.उषा दीदी जी को मिनीमाता सम्मान भी मिल चुका है |
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