maha prabhu vallabachary | महा प्रभु वल्लभाचार्य
श्री वल्लभ का अर्थ है प्रियतम | वे भगवन श्री कृष्ण जी के सबसे प्रिय है और वे अपने सभी शिष्यों के भी बहुत प्रिय है | महा प्रभु
वल्लभाचार्य जी एक महान संत थे जिन्होंने साकार ब्रह्मवाद का दर्शन प्रतिपादित किया जिसे शुधाद्वैत भी कहा जाता है | श्री वल्लभाचार्य जी एक महान व्यक्तित्व के धनी थे जिन्होंने समाज में लोगो के कल्याण के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया | श्री महा प्रभु वल्लभाचार्य जी भगवान् श्री कृष्ण जी के महान भक्त थे | वे भगवान श्री कृष्ण जी से अति प्रेम करते थे |
महा प्रभु वल्लभाचार्य जी का जीवन परिचय
भगवान् श्री वल्लभाचार्य जी छत्तीसगढ़ भगवान् श्री वल्लभाचार्य जी छत्तीसगढ़ के एक महान संत के रूप मे जाने जाते है | उन्हें भक्तिमार्गी और पुष्टि मार्ग के संस्थापक माने जाते है | महा प्रभु श्री वल्लभाचार्य जी का जन्म छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर जिले में स्थित राजिम के पास चंपारण में बैशाख शुक्ल 11 संवत 1535 में हुआ था | श्री वल्लभाचार्य जी के पिता जी का नाम श्री लक्ष्मण भट्ट जी था तथा उनकी माता का नाम इलम्मागारूजी था |
श्री महा प्रभु वल्लभाचार्य जी के पूर्वज भारत देश के महाराष्ट्र में रहते थे | वे विष्णु स्वामी विचारधारा के अनुयायी तेलगु वैदिक ब्राह्मणों के एक लम्बी कतार से थे | , जिन्हें वेल्लानाडू के नाम से जाना जाता था | श्री वल्लभाचार्य जी के जन्म के आसपास का समय बहुत ही उथल पुथल वाला समय था उस समय पुरे उत्तरी तथा मध्य भारत पूरा मुस्लिम शासको के आक्रमण से बुरी तरह से प्रभावित था |
इस क्षेत्र में रहने वाले लोग अपनी आस्था की रक्षा के लिए उन क्षेत्रो से पलायन के लिए मजबूर थे वे उन सक्तियो से लड़ने में असमर्थ थे | एक बार जब श्री लक्ष्मण भट्ट जी वाराणसी में थे तो उन्हें मुश्लिम शासको के सेनाओं के द्वारा किये गये ऐसे ही एक हमले के बारे में सूना , इसी से प्रभावित होकर उन्होंने ने अपनी गर्भवती पत्नी के साथ वाराणसी छोड़ कर चले गये | रास्ते में ही उनकी पत्नी श्री इल्मागारुजी को दो महीने पहले ही समय से पहले ही प्रसव हो गया |
समय से पहले जन्म के कारण जन्मे बच्चे में जीवित होने कोई भी लक्षण नही दिखाई देने की वजह से वे बहुत ही गहरे सदमे थे | उनके पास कोई अन्य विकल्प न होने के कारन उन्होंने अपने बच्चे को एक कपडे से लपेटकर एक पेड़ के नीचे छोड़ दिया | इसी दौरान भगवान् श्री कृष्ण जी ने महा प्रभू श्री वल्लभाचार्य जी के माता पिता को उनके सपने में आकर उन्हें सूचित किया की उन्होंने स्वयं एक बच्चे के रूप में उनके यहाँ जन्म लिया है |
इसके बाद उनके माता पिता तुरंत ही उस पेड़ के पास पहुचे तो उन्होंने अपनर बच्चे को जीवित और अग्नि के घेरे में सुरक्षित देखा | और वे इसे देख कर बहुत ही खुश हुए | धन्य माता ने बिना किसी नुकसान के आग में अपनी भुजा फैला दी और उन्हें अग्नि से दिव्य शिशु प्राप्त हुआ और इस प्रकार इस बच्चे का नाम वल्लभ रखा गया जो आगे महा प्रभु श्री वलाभाचार्य जी के नाम से प्रसिद्ध हुए |
श्री महा प्रभु वल्लभाचार्य जी की शिक्षा
श्री महा प्रभु महा वल्लभाचार्य की शिक्षा सात वर्ष के उम्र में ही चार वेद के अध्ययन से शुरू हो गयी थी | उन्होंने भारतीय दर्शन की 6 प्रणालियों की व्याख्या करने वाली पुस्तकों पर महारत हासिल कर ली थी | उन्होंने जैन विद्यालयो के साथ साथ श्री शंकराचार्य , श्री रामानुजाचार्य , श्री माधवाचार्य , की दार्शनिक प्रणालियों को भी गहराई से सिखा | वे ना केवल आरम्भ से अंत तक बल्कि उल्टे क्रम में भी सैकड़ो मंत्रो का जाप कर लेते थे |
पुष्टि मार्ग
महा प्रभु श्री वल्लभाचार्य जी आगे चल कर भगवान् श्री कृष्ण जी के महान भक्त हुए | कहा जाता है की भगवान् श्री कृष्ण जी की नगरी वृन्दावन में उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् श्री कृष्ण जी ने उन्हें बालस्वरूप के उपासना करने की आज्ञा देते हुए विधि बतलाई थी | उसी विधि का महा प्रभु बल्लभाचार्य जी ने प्रचार किया जो पुष्टि मार्ग कहलाता है | यह माया संबध रहित बड़ा ही अद्वितीय तत्व है अत: इस मत का शुधाद्वैतनाम यथार्थ है
ये वैष्णव धर्म के कृष्ण मार्गी शाखा से सम्बंधित है |
महा प्रभु जी की साहित्य रचना
श्री वल्लभाचार्य जी ने कई साड़ी साहितिक रचनाये भी की जिनमे उन्होंने अपने दार्शनिक और भक्ति पूर्ण विचारों को दर्शाया है | जैसे –
- अणुभाष्य या ब्रह्मसूत्रनुभाष्य – वेद व्यास के ब्रह्म सूत्र पर भाष्य
- तत्वार्थ दीप निबंध –अध्यात्म के मूल सिधान्तो पर आधारित ( 3 अध्याय – 1. शास्त्रार्थ प्रकरण 2. सर्वनिर्णय प्रकरण 3. भागवतार्थ प्रकरण )
- श्री सुबोधिनी – श्रीमद्भगवत महापुराण
- पर भाष्य: षोडषग्रन्थ षोडष ग्रन्थ आदि
महा प्रभु वल्लभाचार्य जी के तुलसीदास जी शिष्य महा प्रभु वल्लभाचार्य जी के तुलसीदास जी शिष्य थे | तथा महा प्रभु वल्लभाचार्य जी के जी गुरु जी का नाम श्री विल्वमंगलाचार्य जी थे जिन्होंने महा प्रभु वल्लभाचार्य जी को अष्टादशाक्षर गोपालमंत्र की शिक्षा दी | महा प्रभु वल्लभाचार्य जी को त्रिदंड की दीक्षा स्वामी नारायणेन्द्र तीर्थ से प्राप्त हुयी |
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