Lord Jagannath Temple || भगवान जगन्नाथ का मंदिर कैसे बना
Lord Jagannath Temple : वाल्मीकी ने लिखा रामायण के आनुसार त्रेता युग में इद्र पुत्र बाली का अंत किया था बज बाली में भगवान श्री राम से बीना कारण अपने अंत का कर्ण पुच्छा तो भगवान श्री राम बाली को यह आसवासन देते है कि द्वापर युग में जब वह मानव के रूप में आवतार लेंगे तब वो यानी बाली एक बहेलि के रूप में जन्म ले कर उनकी मृत्यु का कारण बनेगा |
श्रीमत भागवत गीता के अनुसार
जब गांधारी के श्राप के कारण केतु वंशी आपस में लड़ कर समाप्त हो जाते है तो तब श्री कृष्ण के पीपल के पेड़ के नीचे चतुर भुज का रूप धारण कर योग निद्रा में बैठ जाते है तभी वाह से जरा नाम का एक पहेलिया गुजर रहा होता है |
जो भागवान के लाल चमकते तलवे को हिरन का मुख समझ कर एक बाण चला देता है जरा को जब यह पता चलता है कि बल्कि वह कोई और नही भगवान कृष्ण है तो उसे अपनी गलती पर बहुत दुःख होता है |
उसके बाद वह भगवान कृष्ण से अपनी गलती पर माफी भी मांगता है | तो कृष्ण भवगान जरा को कहता है कि तुमने को अपराध नही किया है | यद्यपि इस नियति की पठ कथा त्रेता युग में पहले से लिख दिया है जो आज तुम्हारे हाथो भूल हुई है |
कृष्ण भगवान जरा को यह भी बताता है कि तुम पूर्व जन्म में वानर राज बाली का जन्म लिए थे | और मैंने तुम्हारा अंत ताडवृक्ष के नीचे छीप पर किया था | जो की युद्ध भूमि के नियम के विपरीत था तुम इस अपराध से मुतक हो जाओ |
भगवान श्रीकृष्ण का अंतिम संस्कार

जरा बहेलिया दुखी मन से भगवान कृष्ण को छोड़ कर चल जाता है और कुछ समय बाद श्री कृष्ण मानव रूपी नस्वर देह को त्याग या छोड़ कर परमा नंद के साथ स्वधाम के लिए प्रस्थान करते है | जब यह बात पांडवो को मालूम हुआ तो वह सभी द्वारिका आ कर भगवान श्री कृष्ण के देह का अंतिम संस्कार कार करते है |
इंद्रद्युम्न राजा
उस अग्नि में शरीर तो जल जाता है परन्तु भगवान श्रीकृष्ण का हृदय नही जल पाता है | ये देख कर पांडव भगवान श्रीकृष्ण के हृदय को एक लट्ठे में बांध कर समुद्र में प्रवाहित कर देता है | जो बहते हुए पूरी के समुद्र तट पर जा पहुचता है उस समय मालवा राज्य में इंद्रद्युम्न नाम का एक राजा हुआ करता था |
इसकी राजधानी अवंती पुर थी जो स्वयं भगवान विष्णु के परंम भक्त थे वे सदेव ही भगवान विष्णु के दर्शन की इच्छा रखते थे | एक राज श्री हरी विष्णु राजा इंद्रद्युम्न के स्वपन में आकर दर्शन देते है |
भगवान विष्णु का इंद्रद्युम्न से सपने में बात
भगवान विष्णु राजा इंद्रद्युम्न के सपने आकर दर्शन देते है कि हे राजा तुम पूरी के समुद्र तट पर जाओ तुम्हे वह पर लकड़ी का तैरता हुआ लट्ठा दिखेगा उसे ला कर तुम भव्य मूर्ति का निर्माण करो | राजा इंद्रद्युम्न भगवान विष्णु के बातो को मान कर पूरी के समुद्र तट पर पहुच जाता है | जहा पर उन्हें लकड़ी का एक भारी लट्ठा पानी में तैरता हुआ दीखता है |
जिसके साथ उन्हें कपडे से बाधा हुआ एक लट्ठा दीखता है | राजा इंद्रद्युम्न के सेवक उस लट्ठे को उचा कर राजधानी ले आते है जिसके बाद राजा अपने राज्य के सभी कुशल कारी गरो को बुला कर भगवान विष्णु यानि नील माधव कि मुरी बनाने का आदेश देते है |
परन्तु कोई भी कारीगर इस लकड़ी से मूर्ति नही बना पाता है | जब अवंती पुर राज्य के कोई भी कारीगर इस लकड़ी के लट्ठे से मुरी नही बना पाते है तो भगवान विष्णु पुनः राजा इंद्रद्युम्न के सपने में आता है और उन्हें दर्शन देते है | आप देवताओ के सिल्प कार भगवान विश्कर्मा कि आराधन कीजिए |
वे इस कार्य में आपकी सहायता करेंगे | भगवान विष्णु के आदेश से राजा इंद्रद्युम्न देवताओ के शिल्प कार विश्कर्मा जी की आराधना करने लग जाते है तब राजा इंद्रद्युम्न कि आराधना से प्रसन्न भगवान विश्कर्मा जी एक वृद्ध सिल्प कार के रूप में राज महल में पहुच जाते है |
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