Jagannath rath yatra : जगन्नाथ रथ यात्रा
रथयात्रा जिसे भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के नाम से जाना जाता है| हर वर्ष रथयात्रा पूरी में निकलता है जिसमे भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा विराजमान होते है| साल 2024 में रथयात्रा 7 को निकाला जायेगा| तो आइये जानते है रथयात्रा के बारे में सबकुछ इसकी शुरुआत कब हुई थी और कैसे हुई थी इतिहास से लेकर वर्तमान तक सबकुछ जानेंगे |
history of rath yatra : रथयात्रा का इतिहास
इसका इतिहास बड़ा ही रोचक है आइये जानते है रथयात्रा का इतिहास सतयुग के एक राजा जिनका नाम इंद्रद्युम्न और उनकी पत्नी गुंडीचा नारायण भगवान की बहुत बड़ी भक्त थी| उनके महल में एक नीम का पेड़ था जिसके निचे महाराज हमेशा यज्ञ करते थे | नारायण उनकी पत्नी के सपने में आये और उन्होंने कहा की नीम को जगन्नाथ मानकर पूजा कीजिये|
उसके बाद राजा और महारानी ने नीम के निचे तीन मूर्तियाँ बनाई जो जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की थी| भगवान विष्णु एक बार और उनके सपने में आये और उन्होंने मूर्ति को मंदिर में स्थापित करने को कहा और बोले की मंदिर में स्थापित होने के बाद मई फिर भी हर साल 7 दिनों के लिए तुम्हारे महल आता रहूँगा| फिर राजा ने मंदिर का निर्माण कराया और और उसके बाद रानी ने कहा की मूर्ति को मंदिर में स्थापित करना है और फिर मूर्ति को महल से मंदिर तक ले जाने के लिए rath yatra की शुरुआत हुई|
wood for rath yatra : रथयात्रा के लिए लकड़ी
Jagannath rath yatra : रथयात्रा के लिए जो रथ बनाया जाता है उसके लिए लकड़ी ओडिशा के मयुरभंज, गंजाम और क्योंझर के वन से आती है| वन विभाग के अधिकारी मंदिर वालो को सूचित करते है| पुजारी लकड़ी की पूजा करते है और सोने की कुल्हाड़ी से पेड़ो पर काट लगाते है| उसके बाद पेड़ को काटा जाता है फिर पूजा की जाती है| उसके बाद जो लकड़ी रथ बनाने के लिए उपयोगी होता है उसे अलग कर दिया जाता है| रामनवमी के दिन से ही लकड़ी काटने का काम प्रारंभ कर दिया जाता है| गजपति महल के पास रथ बनाने का कार्य किया जाता है|
रथयात्रा को बनाने के लिए फ़ासी, धौरा सिमली,सहजा तथा मही लकड़ी का उपयोग किया जाता है| प्रत्येक लकड़ी से रथ का अलग अलग भाग बनता है| और सबसे मजबूत लकड़ी धौरा से पहिया का निर्माण किया जाता है| फ़ासी लकड़ी से पहिया का एक्सेल बनता है जिससे पहिया घूमता है| सिमली और मही लकड़ी से रथ यात्रा का उपरी हिस्सा तैयार किया जाता है| और जहाँ पर ज्यादा बल नहीं लगता वहां पास सहजा लकड़ी का उपयोग किया जाता है|
chariot making community : रथ को बनाने वाले समुदाय
1.पहला समुदाय है महाराणा (विश्वकर्मा) समुदाय इसमें सुतारी महाराणा का काम रथ के नाप का ध्यान रखना और तली महाराणा का काम रथ के भागो को जोड़ना
2.दूसरा समुदाय है भोई सेवक का जहाँ पर रथ का निर्माण होता है वहां पर ये लकड़ी ले जाते है|
3. तीसरा समुदाय करतीय है जो लकड़ी को चीरते है
4. चौथा समुदाय लोहार है जो रथो के पहिये में लगने वाले लोहे और पीतल को बनाते है|
5. पांचवा समुदाय रूपकार है जो तीनो रथ पर अपनी कलाकृति करते है|
6. छठवा समुदाय दर्जी है जो रथ में लगने वाले कपडे बनाते है|
7. सातवाँ समुदाय चित्रकार का है जो रथ में रंग भरते है |
chariot of Jaganath : जगन्नाथ का रथ
भगवान जगन्नाथ के रथ में लकड़ी के तीन घोड़े होते है और उनके नाम शंख, बलाहक, और श्वेत है| और इन्हें सफ़ेद रंग से रंगा जाता है| और उसके बाद नंदीघोष में 16 पहिये होते है| जगन्नाथ भगवान के रथ में सुदर्शन स्तम्भ होता है| हनुमान भगवान और नरसिंह भगवान का भी प्रातक चिन्ह लगा होता है| और इसमे लगी ध्वजा को त्रैलोक्यमोहिनी कहा जाता है| और इस रथ का रक्षक गरुड़ जी है| रथ को कपडे से सजाने के लिए लगभग 1100 मीटर का कपडा लगता है| इस रथ का सारथि दारुक है| जिस रस्सी से रथ को खींचते है उसे शंखचुड कहते है|
रथयात्रा समाप्त होने के बाद रथ को तोड़ दिया जाता है क्योंकि नए रथयात्रा के लिए नए रथ का निर्माण करना जरुरी होता है| और यह एक परंपरा भी है और रथ को वहीँ लोग तोड़ते है जो बनाते है| और लकडियो को भक्त ले जाते है| तो यह था रथयात्रा और भगवान जगन्नाथ के रथ के बारे में पूरी जानकारी |
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