pandwani gayika tijan bai | तीजन बाई
छत्तीसगढ़ की लोक कला संस्कृति आज देश दुनिया में प्रसिद्ध है | और छत्तीसगढ़ की लोक कला संस्कृति को देश दुनिया में फैलाने में छत्तीसगढ़ के कलाकारो का खास योगदान रहा है | जिन्होंने छत्तीसगढ़ के कला संस्कृति को विश्व स्तर पर पहुचाया इसमें ही प्रसिद्ध नाम तीजन बाई जी का है जो छत्तीसगढ़ की मशहूर पंडवाणी गायिका है | तो आईये जानते जानते है इनके जीवन की कुछ खास बाते |
जीवन परिचय
तीजन बाई बस यह एक नाम ही काफी है जैसे ही यह नाम सुने देता है हर किसी के मन में सबसे पहला विचार पंडवानी का ही आता है | जिसका अर्थ पांडव कथा अर्थात महाभारत से है | उनका नाम आते ही हाथो में तम्बूरा लिए उनका दृश्य सामने आ जता है | आज के समय में तीजन बाई और पंडवानी एक दुसरे का पर्याय बन गये है |
छत्तीसगढ़ की लोक कला पंडवानी को राष्ट्रिय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहुचाने में उसे पहचान दिलाने में तीजन बाई का बहुत ही बड़ा योगदान रहा है | तीजन बाई जी का जन्म 24 अप्रैल 1956 को भारत में स्थित छत्तीसगढ़ राज्य में दुर्ग जिले के भिलाई के पास स्थित गनियारी में | हुआ वे देश की पहली महिला पंडवानी गायिका है | देश विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन कर ख्याति प्राप्त करने वाली तीजन बाई को बिलासपुर विवि द्वारा डी लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया है |
तीजन बाई के पिता जी का नाम हुनुकलाल परधा है | उनकी माता का नाम सुखवती था | 12 साल की उम्र में ही उनकी शादी कर दी गयी थी |
तीजन बाई जी का व्यक्तिगत जीवन
तीजन बाई जी का उनके माता पिता ने केवल 12 साल की उम्र में ही शादी कर दी थी उनके पति का नाम तुका राम जी था | चुकी तीजन बाई एक महिला थी | इस कारण उन्हें पंडवानी गायन के लिए उन्हें पारधी समुदाय से बहार कर दिया गया | इसके बावजूद तीजन बाई जी हार न मानते हुए अपनी खुद एक झोपड़ी बनायीं और वही रहने लगी | सुरुआत में उन्होंने अपने पड़ोसियों से उधर मांगकर अपना भोजन बनाया और अपनी भूख मिटाई |
इतनी साड़ी कठिनायो के बावजूद उन्होंने अपनी गायिकी नहीं छोड़ी इसने अंत में उन्हें सफलता की नयी उचाईयो पर पहुचा दिया | तीजन बाई जी कभी अपने पति के घर नही गयी और बाद में उन्होंने उन्हें तालक दे दिया | तीजन बाई जी की दो बार शादी हो होकर टूट चुकी थी बाद उन्हें अपनी ही मंडली के तुक्का राम जी से प्यार हो गया जो उनकी मण्डली में हारमोनियम वादक था |आज वे अपने पति तुक्का राम के साथ सुखी जीवन बिता रही है |
तीजन बाई को प्राप्त उपाधि
देश विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन कर दुनिया भर में ख्याति प्राप्त करने वाली तीजन बाई जी को बिलासपुर विवि ने डी लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया है | साथ उन्हें सन 1988 में पद्मश्री सम्मान मिला इसके बाद उन्हें सन 2003 में उन्हें पद्मभूषण सम्मान मिला | 1995 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी और 2007 में नृत्य शिरोमणि से सम्मानित किया गया |
तीजन बाई जी के गुरु
छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध पंडवानी गायिका तीजन बाई जी ने श्लोक सिखाने का श्रेय अपने नाना जी को दिया है | बाद में उन्होंने उम्मेदसिंह जी से पंडवानी को विभिन्न विधाओ की शिक्षा ली | और आज वे उन्ही शिक्षा के दम पर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है |
तीजन बाई जी की पहली प्रस्तुती
तीजन बाई के नाना जी ब्रजमोहन लाल जी एक कलाकार थे | तीजन बाई जी ने अपने नाना जी को महाभारत की कथा गाते और सुनाते देखा करती थी और इसी तरह देखते देखते तीजन बाई को पूरी महाभारत याद हो गयी थी | तीजन बाई जी की इस अनोखी प्रतिभा को देखकर उम्मेद सिंह जी ने उन्हें औपचारिक शिक्षण प्रदान किया | तीजन बाई जी ने 13 साल की उम्र में पहली बार अपनी कला का प्रदर्शन मंच पर किया | उन्होंने अपनी पहली प्रस्तुती 13 साल की उम्र में दुर्ग जिले के चंखुरी गाव में किया था |
तीजन बाई की शैली
पहले महिलाओ को बैठ कर ही गाने की अनुमति थी इस प्रकार की शैली को देवमती शैली कहते है | जबकि पुरुष खड़े होकर गाते है उसे कापालिक शैली कहते है | तीजन बाई जी खड़े होकर पंडवानी गाना शुरू किया अर्थात उन्होंने अपने गायन के लिए कापालिक शैली का चयन किया |
विदेश यात्रा
तीजन बाई की प्रथम प्रस्तुति के दौरान ही प्रसिद्ध रंग कर्मी हबीब तनवीर जी की नजर उनपर पड़ी उसके बाद तीजन बाई जी को एक के बाद एक राष्ट्रिय और अंतराष्ट्रीय मंचो पर गायन का अवसर मिला | इसके बाद सन 1980 में उन्होंने सांस्कृतिक राजदूत के रूप में इंग्लैण्ड , फ्रांस , स्विट्जरलैंड , जर्मनी , टर्की , माल्ट , साइप्रस , रोमानिया और मॉरिशस में अपनी प्रस्तुति दी |
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