छत्तीसगढ़ कलचुरी वंश | Kalchuri dynasty Chhattisgarh
Kalchuri dynasty Chhattisgarh : छत्तीसगढ़ राज्य में कलचुरी वंश के स्थापना से संबधित विवरण Kalchuri dynasty के अनेक अभिलेखों से प्राप्त होता है की होता है की चेदी वंश में एक कोकल्ल नामक राजा हुआ | उसके 18 पुत्र हुए जिनमे ज्येष्ठ पुत्र त्रिपुरी राज्य का उत्तराधिकारी हुआ , उसने अपने भाइयो को अन्य मंडलों का उसने अपने भाइयो को अन्य मंडलों का राजा नियुक्त कर दिया | इन छोटे भाइयो में से एक के वंश में कलिंगराज का जन्म हुआ |
जिसने दक्षिण कोसल के क्षेत्र को जीतकर पूर्वजो द्वारा स्थापित किये गये तुम्मान को अपनी राजधानी बनाया | इस प्रकार dakshin kosal में कलिंगराज द्वारा राज्य स्थापित कियर जाने की जानकरी मिलती है | कलिंगराज से कलिंगराज ने पूर्व दक्षिण कोसल में किस कलचुरी राजा ने शासन किया था इसका विवरण यध्यपि रतनपुर के कलचुरी शासको के विवरणों में संरक्षित नही है लेकिन त्रिपुरी शाखा के अभिलेखों से इसकी पुष्टि होती है |
द्वितीय युवराज देव के बिलहरी अभिलेख से ज्ञात होता है की कोकल्ल प्रथम के पुत्र शंकरगण द्वितीय ने लगभग 900 ई. में पूर्वी समुद्र सहित अनेक राज्यों पर विजय प्राप्त की तथा कोसल अधिपति से पाली का राज्य छीन लिया था और पाली राज्य के आस पास के क्षेत्र पर भी अधिकार स्थपित कर लिया था |
पाली का क्षेत्र Kalchuri dynasty के पूर्व किसके अधिकार में था इस विषय में विद्वानों में मतभेद है | डॉ.वासुदेव विष्णु मिरासी का कथन है की कलचुरियो ने बावंशीय राजा से यह क्षेत्र अपने अधिकार में लिया होगा | बालचन्द्र जैन का कथन है की शंकरगण ने सोमवंशीय राजाओ को पराजित कर उनसे पाली का क्षेत्र छीन लिया था | शंकरगण द्वितीय ने अपने वंश के एक व्यक्ति को यहाँ का राजपाल नियुक्त कर दिया था |
लेकिन कलचुरियो का अधिकार इस क्षेत्र में अधिक समय था अधिक समय तक तक नही रह सका | लगभग 950 ई. में सोमवंशियो ने कलचुरियो से कोसल क्षेत्र पर पुनः अधिकार कर लिया | कालान्तर में द्वितीय कोकल्ल देव के राज्य काल में में कलिंगराज नामक राजा ने अपने बाहुबल से दक्षिण कोसल के जीतकर कलचुरी राज्य की स्थापना लगभग 1000 ई. में की |

रतनपुर के कलचुरी शासको का राज्य
कलिंगराज (1000 से 1020 ई.)
dakshin kosal के कलचुरी वंश के अभिलिख में कलचुरी वंश के अभिलेख से सामान्य उल्ल्लेख मिलता है की कोकल्ल देव के छोटे पुत्र के परिवार में कलिंगराज का जन्म हुआ था किन्तु तृतीय रत्नदेव के कलचुरी 933 ई.. के खरौद के खरौद अभिलेख में कलिंगराज कोकल्ल के सबसे छोटे कलिंगराज कोकल्ल के सबसे छोटे पुत्र का उल्लेख है |
दक्षिण कोसल क कुछ भाग पर यद्यपि शंकरगण के काल में आधिपत्य स्थापित हो गया था किन्तु यह स्थयी नही हो सका | dakshin kosal में कलचुरी कलचुरी कलचुरी कलचुरीयो की वास्तविक सत्ता की स्थापना लगभग 1000 ई. में हुयी जब कोकल्ल देव द्वितीय के शासनकाल में Kalchuri dynasty के एक राजकुमार कलिंगराज ने अपने पूर्वजो द्वारा स्थापित किये गये गये तुम्मान को राजधानी बनाया |
कमलराज (1020 से 1045 ई.)
कलिंगराज का पुत्र कमलराज 1020 इसवी के लगभग गद्दी पर बैठा गद्दी पर बैठा जो त्रिपुरी के गांगेयदेव को त्रिपुरी के गांगेयदेव का समकालीन था | उसके राज्यकाल में त्रिपुरी के गांगेयदेव ने उत्कल देश पर आक्रमण किया था | इसके इसके लिए उसे dakshin kosal से होकर जाना पड़ा | उस समय उसने उस समय उसने कमलराज को सहायतार्थ बुलवाया था |
कलचुरी ताम्रपत्र में कहा गया है की कमलराज ने अपने स्वमी के लिए उत्कल राजा को पराजित कर अनेक हाथी , घोड़े और सम्पत्ति लूट मे प्राप्त ली थी | पराजित उत्कल का राजा कौन था इसके कोई प्रमाण नही है | इसका अभी तक प्रमाणिक ज्ञान नही है |
रत्नदेव प्रथम (1045 से 1065 ई.)
कमलराज के बाद रत्नदेव प्रथम गद्दी पर बैठा | उसने कोमोमंडल के अधिपति वज्जुक अथवा वजुवर्मन की कन्या नोनाल्ला से विवाह किया था | इससे छत्तीसगढ़ में कलचुरियो का प्रभाव बढ़ा | डॉ.वी.वी. मिरासी इस विवाह की तुलना गुप्त शासक चन्द्रगुप्त तथा लिच्छवी राजकन्या कुमारदेवी से करते है | ऐडा प्रतीत होता है की इस विवाह से dakshin kosal पर उसका अधिकार दृढ हो गया था क्युकी इसके बाद अनेक ताम्रपत्रो में उसका उल्लेख आया है |
रत्नराज ने अपने नाम से रत्नपुर नगर बसाकर वहां अपनी राजधानी स्थापित की थी | यह रत्नपुर बिलासपुर जिले में स्थित वर्तमान रतनपुर ही है जो Kalchuri dynasty की प्रचीन राजधानी तुम्मान से 72 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है | रत्नपुर की ख्याति इतनी अधिक फैली की की इसके चारो युगों में होने की कल्पना की जाने लगी |
पृथ्वीदेव प्रथम (1065 से 1095 ई.)
रत्नराज प्रथम के देहवासन के बाद उनका पुत्र पृथ्वीदेव प्रथम 1065 ई. में रतनपुर राज्य का अधिपति बना | उसके राज्यकाल के इतिहास पर प्रकाश डालने वाला तीन अभिलेख क्रमशः आमोदा , रायपुर तथा लाफा से प्राप्त हुए है | आमोदा से प्राप्त ताम्रपत्र अभिलेख में उसे 1 हजार ग्रामो का शासक कहा गया है | जिसमे सम्पूर्ण दक्षिण कोसल आ जाता है |
पृथ्वीदेव प्रथम ने सकल कोसलाधिपति की उपाधि धारण की थी | उसकी इस उपाधि से यह स्पष्ट होता है उसने सम्पूर्ण दक्षिण कोसल पर अपने प्रभुत्व की स्थापना की थी | पृथ्वीदेव प्रथम को निर्माण कार्यो में रूचि थी , उसने तुम्मान में पृथ्वीदेवेश्वर नामक मंदिर का निर्माण करवाया था | इसी प्रकार राजधानी रतनपुर में समुद्र के समान विशाल सरोवर का निर्माण करवाया था |
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