Muslim Festival || मुस्लिमो का त्योहार ईद-उल-अजहा क्या है ? सम्पूर्ण जानकारी यहा पढ़िए
Muslim Festival आपको बता दे कि भारत में जिस तरह से हिन्दू धर्म के लोग प्रतिवर्ष दीपावली और होली के त्यौहार बड़े धूम धाम से मानते है उसी तरह मुस्लिम समुदायों (वर्ग के लोग) में भी प्रातिवर्ष ईद-उल-अजहा त्यौहार मनाये जाते है l मुसलमानों का यह दूसरा मुख्य त्यौहार है l इस त्यौहार को कई अलग-अलग नमो से भी जाने जाते है l जैसे- ईद-उल-जुहा, ईद अल-अधा, ईदुल अजहा, ईद उल-अजहा, ईद अल-अजहा, बकरीद (बकरा ईद) इत्यादि l
ईद उल-अजहा क्यों मनाये जाते है ?
बता दे कि मुस्लिम वर्ग के लोगो की परम्परा के अनुसार बकरीद (बकरा ईद) का त्यौहार हजरत इब्राहीम की कुर्बानी की याद के लिए मनाये जाते है l इस त्यौहार में मुस्लिम समुदाय के सभी लोग सगेद कपडे पहनकर अपने आसपास के मस्जिदों में एक साथ नमाज पढने जाते है l इसके अलावा वे जानवरों की बलि भी देते है l इस्लामिक परम्पराओ के अनुसार यह बलि मुस्लिम धर्म के लोग अल्लाह के लिए कुर्बान करते है l
हजरत इब्राहीम कौन थे ?
बता दे कि हजरत इब्राहिम का जन्म लगभग 4 हजार वर्ष पूर्व ईराक में हुआ था l जब वे इराक के रजा को एक खुदा मानाने की सुझाव दी तो उसने उन्हें आग में जलाने का प्रयास किया l परन्तु वह आग में नही जल पाया l इसके बाद राजा ने उसे इराक से निकलवा दिया l वह इराक छोड़कर सीरिया चले गए l इसी बिच वह अपनी पत्नी हजरत सारा के साथ मिश्र चले गए l मिश्र के बादशाह की रानी (हजरत हाजरा) से उन्होंने निकाह (शादी) कर लिया (हजरत सारा के कहने पर) और वापस फिलिस्तीन आ गए l
उस समय हजरत इब्राहीम का उम्र लगभग 80 वर्ष का था l फिर भी उसके पहले पत्नी का कोई औलाद नहीं था l दूसरी पत्नी से उसे एक पूत्र हुआ जिसका नाम हजरत इस्माइल रखा l बाद में उसके पहले पत्नी सारा से भी एक पुत्र हुआ उसका नाम हजरत इश्हाक रखा गया l
कहा जाता है कि हजरत इब्राहीम अपनी दूसरी पत्नी और पुत्र को रेगिस्तान (मक्का) में सुन-सान जगह में छोड़ दिया गया l जहा माँ बेटे दोनों प्यास से तडप रही थी l रेगिस्तान में दूर दूर तक कही पेड़ के छाँव नहीं थे l माँ हजरत हजारा बेटे की प्यास बुझाने के लिए उसे एक जगह छोड़कर इधर उधर भटकती रही l इधर बेटे की प्यास बढती गई और वे एडिया रगड़ रगड़ कर रो रहा था l कहा जाता है की बेटे हजरत इस्माइल के एडिया रगड़ने से पानी का स्त्रोत निकला l जिसे देख माँ हजरत हाजरा ने अल्लाह का शुक्रिया किया और उसी पानी से बेटे की प्यास बुझाई l
पुत्र को अल्लाह (खुदा) के लिए किये कुर्बान
कहा जाता है कि एक बार हजरत इब्राहीम को स्वप्न आया, स्वप्न में उसके अल्लाह ने कहा की तुम अपने अजीज चीज (अनमोल या प्रिय) को मेरे रस्ते में कुर्बान कर दो l हजरत इब्राहीम ने यह बात अपने पुत्र इस्माइल से कही l पुत्र इस्माइल ने कहा- अब्बाजान एक पिता के लिए उसका पुत्र ही अजीज (प्रिय) होता है l और पुत्र ने बेझिजक कहा की आप मुझे अल्लाह के रस्ते में कुर्बान कर दीजिये l
अंततः इब्राहीम ने अपने पुत्र की गर्दन पर चाकू रखा अल्लाह ने कहा की इब्राहीम तुमने सपने को सच कर दिया l तुम्हारी कुर्बानी कुबूल हुई अल्लाह का हुक्म हुआ और इब्राहीम ने इस्माइल की जगह एक टूम्बा के गर्दन पर चाकू चला दिया l इब्राहीम ने देखा तो आश्चर्यचकित हो गया l इसी के चलते मुस्लिम समुदाय में कुर्बानी की परम्परा की चालू हो गई l
ईद उल-जुहा कब मनाया जाता है ?
बता दे कि इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार ईद उल-जुहा का त्यौहार 12वे महीने के धु-अल-हिज्जा की 10 तारिक को मनाया जाता है l यह तिथि रमजान महीने के समाप्त होने के तक़रीबन 70 दिनों के बाद आता है l 2024 में इस बार यह त्यौहार 17 जून को मनाया जा रहा है l
ईद उल-जुहा का उद्देश्य
मुसलमानों का मान्यता है कि इस त्यौहार के द्वारा मुसलमानों में मित्रता को बढ़ावा, संयुक्त परिवार, अल्लाह से प्रार्थना, दावत और उपहारों का आदान-प्रदान करना शामिल है l इसके साथ ही यह एकता का प्रतिक है l हजरत इब्राहीम के बलिदान के याद में मुस्लिमो द्वारा परम्परा के अनुसार एक जानवर की बलि देते है और यह बलि अक्सर बकरी, भेड़, उट या गाय के होते है l
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