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Togglechhattisgarhi sports | छत्तीसगढ़ के लुप्त होते खेल
chhattisgarhi sports : वर्तमान समय पूरी दुनिया के लिए आधुनिक समय है | इस समय चाहे वे बच्चे हो या बूढ़े हर कोई बस घर में बैठ कर टीवी या मोबाईल में व्यस्त रहते है | आज के दुनिया में हर किसी के हाथो ने मोबाईल है | खास कर बच्चे और खास कर बच्चे और युवाओ के हाथो में | आज के समय में देख सकते है की कोई भी बच्चा घर से बाहर मैदान में खेल खेलन नही चाहता है |
हर बच्चा आज मोबाइल में विडियो गेम्स खेल रहे है | इस आधुनिकीकरण की दुनिया में छत्तीसगढ़ के कई खेल जो हर गाँव हर गली में बच्चे बड़े ही उत्साह के साथ खेलते थे आज वे दिखयी नही नही पड़ते है | आज हम ऐसे छत्तीसगढ़ के लुप्त होते खेलो के बारे में जानेंगे , और इसके लुप्त होने के कारण के बारे में चर्चा करेंगे |
1.गुल्ली डंडा
गुल्ली डंडा छत्तीसगढ़ राज्य का एक बहुत ही महत्वपूर्ण खेल था | छत्तीसगढ़ सहित पुरे भारत में ऐसा कोई नही होगा जो इस खेल से परिचित न हो | इस खेल को समूह में खेला जाता है | पहले के समय हर बच्चे सुबह और स्कूल के बाद शाम को खेलते हुए दिख जाया करते थे | लेकिन इस खेल का स्थान मोबाईल और tv ने ले लिए है |
इसका सबसे बड़ा दोष मोबाइल में दिए जाने वाले विडियो गेम को दिया जा सकता है | आज बच्चे मोबाइल में फ्री फायर जैसे मोबाइल में फ्री फायर जैसे गेम खेल रहे है | जो उन्हें शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से नुकसान पहुंचा रहे जो उन्हें शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से नुकसान पहुंचा रहे |
कैसे खेला जाता था गुल्ली डंडा
गुल्ली डंडा छत्तीसगढ़ राज्य का बहुत ही प्रसिद्ध गेम जिसे पहले हर बच्चे बड़े ही उत्साह के साथ खेलते थे | इस खेल में माध्यम आकर के लकड़ी के डंडे और लकड़ी के बने छोटे से गिल्ली की जरूरत पड़ती थी | इस खेल को खेलने के लिए मैदान में एक बड़ा गोला बनया जाता था | इसे दो अलग अलग समूहों में या एकल समूह में दोनों तरह से खेला जाता था |
इसमें हर एक खिलाडी को मौके मिलते थे | हर एक खिलाडी डंडे से गुल्ली को बाल की तरह मारते थे और जिसके समूह का गिल्ली अधिक दुरी तक जाता था वह गोले रहकर विरोधी पक्ष के दाम लेता था | दाम देने वाला पक्ष तब तक वापस गोले में आकर वापस से खेल शुरू नही कर सकता जब तक उसकी गिल्ली गोले न आ जाये |
इसमें दाम देने वाले पक्ष के किसी एक खिलाड़ी को गिल्ली अपने पक्ष के साथी अपने पक्ष के साथी खिलाडियों तक पहुचना होता था | और दुसरे पक्ष के खिलाडी उसे गोले ने आने से रोकते थे | इस तरह से गुल्ली डंडा खेल खेला जाता था |
2.तिरिपासा
तिरिपासा छत्तीसगढ़ राज्य का एक और महत्वपूर्ण खेल है जिसे घर में बैठकर भी खेला जा सकता है | तिरिपासा दो तरह से खेला जाता है एक जिसमे 20 खाने होते थे और दूसरा जिसमे 100 खाने होते है | इस खेल में 4 खिलाडी एक साथ खेल सकते थे | इस खेल का एक और रूप सांप सीढ़ी भी है | आज इस खेल को मोबाइल में लूडो का नाम दे दिया गया है |
तिरिपासा गर्मी के समय का सबसे प्रिय खेल हुआ करता था | जो आज के इस आधुनिक दुनिया में दिखयी नही देता है | तिरिपासा खेल को बच्चे और बूढ़े महिला सब एक साथ घर में घर में बैठ कर खेल सकते थे | इस खेल से बच्चो में में मानसिक वृद्धि होती थी | लेकिन यही खेल मोबाइलों में आ गयी है जिससे बच्चो में जुए और मोबाइल की लत दिखाई दे रही है |
3.कंचे का खेल
छत्तीसगढ़ का एक और प्रसिद्ध गेम जो पहले बच्चों का सबसे पसंदीदा खेल हुआ करता था | इस खेल को जादातर समूहों ने खेल जाता था | यह बरसात के मौसम अधिकतर बच्चे खेलते हुए दिखाई पद जाते थे | इस खेल में कांच के बने कंचे का प्रयोग करते थे | इसमें हर बच्चा इन कंचो को दो श्रेणियों ने बाँटते थे एक सामन्य काले कंचे और इसका राजा एंटर ते थे एक सामन्य काले कंचे और इसका राजा एंटर जिससे खिलाडी निशाना खिलाडी निशाना लगाते थे |
इस खेल से बच्चो की उंगलिया मजबूत और उनका फोकस भी बढ़ता था | लेकिन अब ये खेल सामन्यता दिखयी नही देते है | इस खेल को तीन तरह से खेला जाता था सबसे पहला जिसमे हर खिलाडी सिर्फ अपने लिए खेलता था और इसमें एक छोटा सा गढ्ढा बनाया जाता था | इसमे हर एक को 10 तक का या इससे अधिक का टास्क दिया जाता था |
दूसरा प्रकार वो जो समूह में खेला जाता था इसमें एक चौकोर आकर का बॉक्स बनाया जाता था और उसमे धन का निशान बनाया जाता था और सभी एक एक लाइन में खाडे होकर इस बॉक्स को पार को पार करने की कोशिश करते थे | जो भी इसे पार कर लेता था वह वह कंचे अपने पास रख लेता था और दुसरे खिलाडी का कंचे अपने पास रख लेता था और दुसरे खिलाडी का इन्तजार करता और को इन्तजार करता और जो खिलाडी इस बॉक्स को पार नही कर पाता था उसे अपने कंचे इस बॉक्स में अपने कंचे भरने पड़ते थे |
और वो खिलाडी जो इस बॉक्स इस बॉक्स बार कर लेते थे वो भरे हुए कंचे को इस बॉक्स से बाहर निकल कर अन्य खिलाडी को कोहनी के बल दाम दिलाते थेइसे घोसराना कहा जाता था |
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