Role Of Tribal Communities Viksit Bharat : विकसित भारत अभियान में आदिवासी समुदायों की भूमिका – एक विस्तृत विश्लेषण
Role Of Tribal Communities Viksit Bharat : भारत के सामाजिक ताने-बाने में आदिवासी समुदायों की एक विशेष और महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ये समुदाय न केवल जैव-विविधता, संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान के संरक्षक हैं, बल्कि वे भारत की सतत विकास (Sustainable Development) नीति के आधार स्तंभ भी हैं।
“विकसित भारत @2047” की परिकल्पना तभी साकार होगी जब भारत के लगभग 10 करोड़ आदिवासी नागरिकों को विकास की मुख्यधारा में सम्मानपूर्वक और समावेशी रूप से जोड़ा जाए।
भारत में आदिवासी समुदाय – एक त्वरित अवलोकन
भारत की कुल जनसंख्या का 8.6% हिस्सा आदिवासी समुदायों से आता है।
कुल 705 अधिसूचित जनजातियाँ (Scheduled Tribes) हैं, जो 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में फैली हैं।
इनमें से कई समुदाय PVTG (Particularly Vulnerable Tribal Groups) में आते हैं, जिनकी संख्या 75 है।
प्रमुख जनजातियाँ: गोंड, संथाल, भील, उरांव, हो, मुंडा, बोडो, आदि।

2025 तक की नवीनतम प्रगति और सरकारी प्रयास
बजट आवंटन और योजनाएं:-
जनजातीय मामलों का मंत्रालय (MoTA) 2025–26 बजट: ₹14,925.81 करोड़ (2023–24 से 45.8% वृद्धि)
PM–JANMAN योजना (प्रधानमंत्री जनजातीय न्याय मिशन):
₹80,000 करोड़ का 5-वर्षीय मिशन
63,843 से अधिक आदिवासी बहुल गांवों को कवर करने की योजना
शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पेयजल और डिजिटल सेवाएं सुनिश्चित करना
शिक्षा:
EMRS (Eklavya Model Residential Schools) की संख्या 728 तक पहुँची
प्रत्येक 50,000 की जनसंख्या पर एक EMRS प्रस्तावित
2025 में डिजिटल स्मार्ट क्लासेस और AI आधारित शिक्षण प्रारंभ किया गया
स्वास्थ्य:
Sickle Cell Anaemia Mission 2047
2025 तक 4.5 करोड़ से अधिक आदिवासियों की स्क्रीनिंग
दवा, पोषण और जागरूकता अभियान पर ₹900 करोड़ से अधिक व्यय
आत्मनिर्भरता और आजीविका:
Van Dhan Yojana के अंतर्गत 3,100 से अधिक वन धन केंद्र कार्यरत
~11.83 लाख आदिवासियों को प्रत्यक्ष लाभ
Minor Forest Produce (MFP) की MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) 87 उत्पादों पर लागू
GI टैग और स्थानीय उत्पाद:
कोरापुट (ओडिशा) का “काला जीरा चावल”, छत्तीसगढ़ का “कोसगांव मिर्ची”, मध्यप्रदेश की “गोंड पेंटिंग” को GI टैग मिला
आदिवासी उत्पादों को Tribes India e-Marketplace से जोड़ा गया
चुनौतियाँ और वर्तमान स्थिति
1. शैक्षिक पहुंच
अभी भी कई आदिवासी बच्चों की Drop-out Rate अधिक है
डिजिटल विभाजन (Digital Divide) समस्या बनी हुई है
2. विस्थापन और पर्यावरणीय क्षति
जैसे बोधघाट परियोजना में हजारों परिवारों को विस्थापन की चिंता
“विकास बनाम अस्तित्व” की समस्या आज भी बनी हुई है
3. Forest Rights Act (FRA) और PESA का धीमा क्रियान्वयन
2025 तक कई राज्यों में Forest Rights Claims लंबित हैं
कोडगु (कर्नाटक) में फॉरेस्ट राइट्स सेल तो शुरू हुआ, लेकिन कार्यवाही धीमी

आदिवासी समुदायों की भूमिका – विकास के 5 स्तंभ
1. पर्यावरण संरक्षण और सतत कृषि
आदिवासी समुदायों की परंपरागत कृषि पद्धतियाँ (जैसे झूम खेती) प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर आधारित हैं
वनों की रक्षा, जल स्रोतों की सफाई, औषधीय पौधों का संरक्षण
2. कला, संस्कृति और पर्यटन
गोंड, वारली, भील चित्रकला अब विश्व प्रसिद्ध हैं
आदिवासी नृत्य और संगीत पर्यटन में योगदान कर रहे हैं
3. लोकतंत्र में भागीदारी
ग्राम सभा और PESA कानून के तहत स्वशासन की मिसाल
आदिवासी युवाओं की बढ़ती राजनीतिक सक्रियता
4. डिजिटलीकरण में योगदान
GOAL (Going Online as Leaders) प्रोग्राम से कई युवा डिजिटल उद्यमी बने
“Tech for Tribals” जैसे कार्यक्रमों से उद्यमशीलता बढ़ी
5. सुरक्षा और आत्म-शासन
ग्राम विकास में लोकल बॉडी का सशक्तिकरण
नक्सल क्षेत्रों में भी अब विकास की बाढ़
Sujhaw24.com के सुझाव – पंचायत स्तर पर प्रभावशाली रणनीति
Digital Tribal Database
पंचायत स्तर पर प्रत्येक परिवार की डिजिटल प्रोफाइल
→ शिक्षा, स्किल, संसाधन, और आजीविका से संबंधितForest-linked रोजगार योजना
MGNREGA कार्यों को FRA अधिकारों से जोड़ा जाए
→ वन में आधारित रोजगार की योजनाVan Dhan Plus Hubs
→ प्रत्येक जिला स्तर पर “वन उत्पाद बाज़ार”
→ NGO/CSR के सहयोग से आदिवासी स्व-रोजगार सृजनशिक्षा में टेक्नोलॉजी
स्मार्ट क्लास, AI शिक्षक, भाषा आधारित पाठ्यक्रम
→ गोंडी, भीली, संथाली जैसे भाषा समर्थन के साथमहिला सशक्तिकरण केंद्र
महिला स्वयं सहायता समूहों को Tribal Café, Forest Fiber, Tribal Boutique से जोड़ा जाए
विकसित भारत के सपने को “समावेशी और सतत विकास” के बिना साकार नहीं किया जा सकता।
आदिवासी समुदायों को केवल योजनाओं का लाभार्थी नहीं, बल्कि भागीदार बनाकर ही 2047 तक भारत को वास्तविक रूप में विकसित राष्ट्र बनाया जा सकता है।
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