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ToggleMajor types of rainfall | वर्षा के प्रकार
Major types of rainfall : बारिश तीन प्रकार से होती है-
- संवाहनीय वर्षा ( Convectionan Rain )
- पर्वतीय वर्षा ( Orographic Rain )
- चक्रवातीय वर्षा ( Cyclonic Rain )
संवाहनीय वर्षा ( Convectionan Rain )
जब सूर्य की गर्मी धरती पर पड़ती है तो स्थलीय भाग और जलीय भाग दोनों गर्म हो जाती है | स्थल भाग में सिलिका की उपस्थिति होने के कारण स्थलीय भाग जलीय भाग से जल्दी ही गर्म या ठंडा होती है |
जब पृथ्वी का धरातल गर्म हो जाता है तो उसके संपर्क में आने वाली पवने गर्म होकर ऊपर की ओर उठती है | और संवहनी धाराओ का निर्माण करती है | इन धाराओ के ऊपर जाने के बाद क्षोभमंडल में इसे ठाढक मिलती है जिसकी वजह से आद्र पवने सीतलता को प्राप्त होकर संघनित होने लगती है |
संघनन होने के कारण काले कपासीय बदलो का निर्माण होता है जिसके कारन बहुत अधिक वर्षा होती है इस तरह के वर्षा को संवाहनीय वर्षा कहते है | संवाहनीय वर्षा ( Convectionan Rain ) ज्यादा तर कर्क रेखा से मकर रेखा के बीच होती है |
दक्षिणीय गोलार्द्ध में स्थित स्थल मंडल कम है वही उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल मंडल अधिक है जल की अपेक्षा स्थल मंडल के जल्दी गर्म होने कि वजह से दक्षिणीय गोलार्द्ध की अपेक्षा उत्तरी गोलार्द्ध में अधिक वर्षा होती है |
विषुवतीय प्रदेश – विषुवतीय प्रदेश सबसे अधिक गर्म होती है इस क्षेत्र में संवाहनीय वर्षा सबसे अधिक होती है | 5 डिग्री उत्तरी और 5डिग्री दक्षिणीय अक्षास को डोल ड्रम या शांति पेटी का क्षेत्र कहते है | यह अधिक तापमान या आद्रता के कारण दोपहर 2 बजे से 3 बजे तक कपसिय वर्षा बदल आकास में छाए रहते है |
कुछ समय के अधिक वर्षा के बाद 4 बजे साम के समय तक वर्षा रुक जाती है | विषुवतीय प्रदेश में नियमित रूप से वर्षा प्रतिदिन होती है |
मरुस्थलीय प्रदेश – मरुस्थलीय प्रदेश में वर्षा अनियमित रूप से होता है क्या अपने कभी ध्यान दिया है कि जिस दिन कभी सुबह या दोपहर के समय अधिक गर्मी पड़ती है | उस दिन साम के समय तक बारिश हो जाती है यह संवाहनीय वर्षा का परिणाम है |
पर्वतीय वर्षा ( Orographic Rain )
जब झील, नदी, समुद्र में सूर्य की ऊष्मा पड़ती है तो जल वाष्पीकृत ऊपर की ओर उठती है तथा संघनित होकर बदलो का निर्माण करती है जब यह बदल हवा में चलता है तो उसके मार्ग में पर्वत आदि सतह के टकराव से ऊपर उड़ने लगता है |
ऊचाई में ठंढक मिलने के कारन जल वाष्प दोबारा से पानी बनने लगते है | पानी के छोटे छोटे बुँदे आपस में मिल कर एक बड़े बूंद का निर्माण कर लेती है | ज्यादा ठंढक की वजह से ये बुँदे बर्फ के क्रिस्टल का निर्माण करती है | बड़ी बुँदे और बर्फ के क्रिस्टल में घनत्व अधिक होने के कारण यह भारी होकर निचे गिरने लगती है जिसे हम वर्षा कहते है |
बर्फ के क्रिस्टल जब निचे गिरती है तो रास्ते में ही थोड़ी गर्मी मिलने के कारण बर्फ के क्रिस्टल पानी बन जाते है | ऐसा कभी कभी न होने पर हिम वर्षा भी हो जाती है | ऊचाई बढ़ने के साथ ही वर्षा की मात्रा में कमी आती है |
पर्वत की जो ढाल है पवनो के सामने होती है वही पर ही अधिक वर्षा होती है इस ढाल को हम पवनाभिमुख ढाल जिसे अंग्रजी में Windward slope कहते है | परन्तु जैसे ही पवने वर्वत के दुसरे ढाल से निचे की ओर उतरने लगती है तो ताप मान में वृद्धि के कारण ये हवाए गर्म और शुष्क होने लग जाती है |
जिसके कारण पहले की आपेक्षा आद्रता में कमी आ जाती है और दूसरी ढाल की ओर वर्षा की मात्रा में बहुत ही कम हो जाती है इसे पवानाविमुख( Leeward slope ) ढाल कहते है |
उदाहरण के लिए पश्चिमी घाट महा बालेश्वर में वर्षा की मात्रा 600 सेंटीमीटर है वाही पर कुछ ही किलोमीटर पुणे में जाने पर 70 सेंटीमीटर की बारिश होती है |
चक्रवाती वर्षा ( Cyclonic Rain )
हमारी पृथ्वी के वायुमंडल में गर्म और ठंढी दोनों प्रकार कि हवाए मौजूद होती है , जब वायुमंडल में मौजूद गर्म हवा और ठंडी हवा आपस में मिलती है तो गर्म हवाए हलकी होकर ऊपर कि ओर उठती है | और मौजूद ठंडी हवाए कम दाब वाले क्षेत्र कि ओर गति करती है | हमे ज्ञात है कि हमारी पृथ्वी कि गति घूर्णन प्रकार कि गति करती है इस कारन से ये हवाए भी गोलाई में घुमती है और चक्करदार हो जाती है | और इसी प्रकार कि हवाओं को चक्रवाती हवा (cyclonic rain) कहते है |
ओर इसी चक्रवाती हवायो के मध्य कि हवा ऊपर उठ कर ठंडी हो जाती है और वर्षा के रूप में धरती पर गिरती है | इस प्रकार से होने वाले वर्षा को चक्रवाती वर्षा कहते है | यह वर्ष शीतऋतू के समय भारत के पश्चिम भाग में बरसती है |
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