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bastar dussehra 2024 : बस्तर दशहरा के बारे में देखें पूरी जानकरी

bastar dussehra 2024
bastar dussehra 2024

bastar dussehra 2024 | बस्तर दशहरा छत्तीसगढ़ राज्य

 

bastar dussehra 2024 : छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में होने वाला दशहरा पर्व पुरे छत्तीसगढ़ सहित पुरे भारत में सबसे प्रसिद्ध दशहरा माना जाता है | छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले में होने वाला बस्तर दशहरा भारत सहित पूरी दुनिया का सबसे लम्बा चलने वाला दशहरा पर्व है | यहाँ की इस अनोखे दशहरा को देखेने के लिए देश विदेश से लोग आते है | यहाँ का दशहरा विश्व प्रसिद्ध दशहरा है | इसकी शुरुआत हरेली अमावस्या के दिन पाट जात्रा पूजा विधान के साथ हो जाती है |

यह विश्व प्रसिद्ध दशहरा है | इसका अपना एक अलग ही इतिहास है | यह बहुत ही प्राचीन समय से चला आ रहा है |  bastar dussehra में माँ दंतेश्वरी का रथ यात्रा भी निकला जाता है जिसे सैकड़ो लोग मिलकर खींचते है |

बस्तर दशहरा का हर रस्म पुरे विधि विधान से किया जाता है | जिसके लिए माँ काछन देवी से अनुमति लेने की भी परम्परा है | यह करीब 800 सालो से चली आ रही विश्व प्रसिद्ध परम्परा है | बस्तर का bastar dussehra  पुरे विश्व में सबसे लम्बा चलने वाला एक बहुत ही ,महत्वपूर्ण पर्व है | यह 75 दिनों तक चलने वाला एक बहुत ही महान पर्व है | इसने छत्तीसगढ़ की ख्याति को विश्व स्तर पहुंचा दिया है | यह हर छत्तीसगढ़ राज्य के निवासियों के लिए बहुत ही गर्व की बात है |

बस्तर दशहरा 2024 की अवधि कब से कब तक

छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले में होने वाला बस्तर दशहरा पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है |  bastar dussehra  पूरी दुनिया भर का सबसे लबे समय तक चलने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है | इसने छत्तीसगढ़ राज्य की ख्याति को भारत सहित पुरे विश्व में फैला दिया है यहाँ के इस दशहरे को देखने के लिए भारत सहित पूरी दुनिया से लोग आते है | इस साल बस्तर दशहरे की अवधि 75 दिनों की है | यह 4 अगस्त 2024 से शुरू हो गया है जो 19 अक्टूबर तक चलेगा | यह दशहरा पर्व विभिन्न जनजाति समुदायों की सांस्कृतिक एवं अध्यात्मिक भावना का महत्वपूर्ण प्रतीक है |

बस्तर दशहरा छत्तीसगढ़ राज्य
बस्तर दशहरा छत्तीसगढ़ राज्य

बस्तर दशहरा महिषासुर मर्धानी माँ दुर्गा से हुआ है

बस्तर का दशहरा पुरे दुनिया में प्रसिद्ध है |  bastar dussehra  की सबसे खास बात यह है की यह दशहरा रावण वध से जुड़ा हुआ नहीं है बल्कि यहाँ का दशहरा माँ दुर्गा के द्वारा महिसासुर वध से जुड़ा हुआ है | यहाँ बस्तर दशहरे के पर्व के दौरान माँ दंतेश्वरी का रथ खींचने की परम्परा है | बहुत ही बड़ी संख्या आदिवासी लोग  bastar dussehra  में शामिल होने के लिए दूर दूर से आते है | हर साल अरियाली अमावास को इस पर्व की पहली रस्म पाट जात्रा के रूप में शुरू की जाती है | पाट जात्रा अनुष्ठान के तहत स्थानीय निवासियों के द्वारा जंगल से लकड़िया एकत्र की जाती है | जिसका प्रयोग विशालकाय रथ बनाने में होता है |

बस्तर दशहरा पर्व के दौरान होने वाले रस्म और अनुष्ठान

बस्तर का यह बस्तर दशहरा पूरी दुनिया भर में प्रसिद्ध है यह बहुत ही प्राचीन समय से क हाली आ रही परम्परा है | इसका इतिहास 800 साल पहले का है | साल 2024 में इसकी शुरुआत 4 अगस्त 2024 से हो चुकी है जो 19 अक्टूबर 2024 तक चलने वाली है | इस दौरान कई तरह के रस्मो को पुरे विधि विधान से निभाया जाता है जो इस प्रकार है –

1.पाटा जात्रा लकड़ी की पूजा

2.डेरी गथाई स्तंभों की पोस्टिंग

3.काछन गाडी , काछन देवी के लिए सिहासन

4.कलश स्थापना

5.जोगी बिठाई , जोगी की तपश्या

6.रथ परिक्रमा

7.निशा जात्रा

8.जोगी उत्थान

9.देवी मालवी का स्वागत समाहरोह

10.भीतर रैनी

11.बहार रैनी

12.कछन यात्रा , धन्यवाद दिवस

13.मुरिया दरबार

14.देवी देवताओ को विदाई

बस्तर रथ यात्रा का इतिहास

बस्तर में होने वाली विश्व प्रसिद्ध  bastar dussehra  में रथ यात्रा की शुरुआत चालुक्य वंश के चौथे राजा पुरषोत्तम देव ने की थी | उन्हें जगन्नाथ प्री के राजा ने लहुरी रथपति की उपाधि देते हुए 16 चक्कों का रथ भेंट किया था | उस समय बस्तर की सड़के रथ चलाने के लायक नही थी इस पर उन्होंने रथ का विभाजन कर चार चक्कों को भगवान् जगन्नाथ को भेंट कर कर दिया | इसी के बाद से विजय रथ और फुल रथ बनवाया गया | जिसे आज भी चलाया जाता है | विजय रथ में 8 और फुल रथ में 4 पहिये है |

कौन करता है रथ का निर्माण

रथ का निर्माण बेड़ाउमरगांव और झारउमरगांव के लोग करते हैं। रथ बनाने के काम में 150 लोग शामिल होते हैं। रथ बनाने का काम पिछले 600 साल से चला आ रहा है। लोग इसे मां दंतेश्वरी की सेवा मानकर करते हैं। रथ बनाने में लंबा समय लगता है। एक माह तक अपने सभी काम को छोड़कर लोग रथ बनाने का काम करते हैं। यह एक परंपरा है, जिसका पालन गांव के सभी लोगों को करना पड़ता है। जो लोग इसका पालन नहीं करते हैं, उन्हें अर्थदंड भी देना पड़ता है। यह दस रुपये से शुरू हुआ था और आज 500 रुपये है |

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