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Babasaheb Ambedkar : बाबासाहेब अम्बेडकर की शिक्षा के बारे में जानिए कितनी तकलीफों से गुजरकर उन्होंने अपनी पढाई की

बाबासाहेब अम्बेडकर
बाबासाहेब अम्बेडकर

Babasaheb Ambedkar  :  बाबासाहेब अम्बेडकर की शुरूआती शिक्षा 

 

रामजी राव के ग्राम महुआ में बच्चो के पढाई के लिए स्कूल  की सुविधा थी | आखीर रामजी राव ने अपने गाँव को छोड़ कर सतारा शहर जाने का निर्णय लिया ताकी वह शहर में जा कर पाने आजीविका के लिए कुछ काम कर सके | और अपने तीनो पुत्र का पालन पोषण कर उन्हें पढ़ा कर उनका भविष्य का निर्माण कर सके |

भीमराव के पिता

 

Babasaheb Ambedkar : भीमराव के पिता जानते थे कि हम महार जाती से है और हमारे जाती के लोगो को देश में अछूत माना जाता है | यदि मेरे बच्चो ने शिक्षा ग्रहण नही किया तो उन्हें आगे चल कर भूख गरीबी और कस्टो का सामना कारन पड़ेगा | अगर वे कुछ पढ़ लिख लिए तो हो सकता है किसी दफ्तर में उन्हें बाबू का काम मिल जाए |

Babasaheb Ambedkar
बाबासाहेब अम्बेडकर

 

जिससे वह इज्जत से जीना सीख जाएगे | बड़ी मुस्किल से सतारा शहर में रामजी राव को एक कंपनी में स्टोर कीपर की नौकरी मिली | उसकी ताखा 40 रूपए थी सुबेदारी की नौकरी में रामजी राव को 50,000 रूपए मिलता था लेकिन उसके घर में तंग हालत के कारण उन्होंने वह नौकरी करना स्वीकार कर लिया |

भीमराव अंबेडकर पढाई जीवन का संघर्ष

 

अपने परिवार के साथ सतारा शहर में रहते हुए भीमराव जब 5 वर्ष की आयु के हुए तो उन्होंने अपने पिता से पढ़ने कि इच्छा जाहिर कि उनकी माता जी भी चाहती थी की वह आगे बड़े हो कर पढ़े | उनके पिता राम जी राम अपने बच्चो को आगे पढ़ना चाहते थे |

लेकिन वह यह सोच कर की हम महार लोग है शहर में कौन सा स्कूल हरामे बच्चों को दाखिला देगा | भीम राव के पिता उन्होंने शहर के कुछ स्कूलों में उन्हें ले कर भी गए | लेकिन स्कूलों के संचालक वह हेड मास्टर उनके बेटे भीम राव को दाखिला लेने से माना कर दिया |

भीमराव का स्कूल में दाखिला

 

एक दिन एक स्कूल के हेड मास्टर बालक भीम राव अंबेडकर को शाला में प्रवेस देने के लिए राजी हो गया | लेकिन उसने यह सर्त रखी की वह स्कूल में कक्षा के दवादे से बाहर बैठकर अपनी पढाई करनी होगी अपने बेटे को शिक्षा दलने के लिए राम जी राव ने यह सर्त को स्वीकार कर लिया | इस तरह भीम राव का दाखिला स्कूल में हो गया |

कक्षा के बाहर बालक भीमराव

 

बाबासाहेब अम्बेडकर  एक सीधे साधे बालक थे | अपने पिता की तरह वह बहुत सहन सील बालक थे | इसके साथ वह कुसाग्र बुद्धि वह मेधावी प्रतिभा से भरपूर था कक्षा के दरवाजे के बहार वह उस जगह अपनी टाट बिछा कर बहार बैठते थे जहा पर छात्र अपनी चपल वह जूता उतरा करते थे | लेकिन बालक भीम राव को किसी से उससे कुछ सिकायत नही थे |

उसके मन में केवल विद्या और ज्ञान अर्जित करने का ही सोच था | वे पढाई के द्वारा एक दिन पुरे विश्व के बहुत सारे बातो को जान लेना चाहते थे | भीम राव रोज सुबह से पहले स्कूल पहुचते थे और अपनी कक्षा के बहार ही शिक्षको के द्वारा पढाए जाने वाले पाठ को बहुत ही ध्यान से सुना करते थे |

शिक्षक के पाठ पढ़ाते पढ़ाते उन्हें वह पाठ विद्यालय में ही याद हो जाया करते था | उन्हें अलग के घर में दोबारा याद करने का जरूरत नही पड़ता था | शिक्षक उनसे पाठ के संबंध में जो जो सवाल पूछते थे उसका भीम राव एक दंम सही जवाब दिया करते थे |

बालक भीमराव को बचपन के समय में किस तरह अपमानीत किया

 

एक दिन गणित के अध्यापक ने कक्षा के ब्लाक बोर्ड पर लिखा और भीम राव को उसे हल करने के लिए बुलाया | बालक भीम राव बड़े ही गर्व से कक्षा के अंदर जाते है और जैसे ही ब्लाक बोर्ड के तरफ प्रवेश करता है | कक्षा के सभी बच्चे चिल्ला कर कहने लगे की मास्टर जी भीम राव अछूत है ब्लाक बोर्ड के पास हमारे खाने का टिपिन रखा हुआ है |

इसकी परछाई से हमारा टिपिन का खाना अपवित्र हो जाएगा | भीम राव ब्लाक बोर्ड के पास नही पहुच सका और छात्रो के आक्रोस के समक्ष झुकते हुए अध्यापक भीम राव के वापस अपनी जगह बैठने को कहा | इस तरह एक कई अपमान और तिरस्कार भीम राव को सहना पड़ा |

एक बार प्यास लगने पर बाकल भीम राव कुए से पानी पी लिया | इस पर वह खड़े लोगो ने उसकी जाति पूछ कर उसकी खूब पिटाई की, के दिन स्कूल के बच्चो को रिक्से में बैठा देख कर भीम राव के मन में भी रिक्से की सवारी करने का इच्छा हुआ | उन्होंने सड़क पर गुजरते हुए एक रिक्से को हाथ दे कर रोका और कहा कि मुझे मेरे घर तक ले चलो मै तुम्हे रिक्सा का किराया भी दूंगा |

रिक्सा चालक ने किया भीमराव अंबेडकर का अपमान

 

रिक्से वाले ने बालक भीम राव को अपने रिक्से में बैठा लिया और अपना रिक्सा खीचने लगा | रिक्सा चलते हुए रिक्सा चालक बातो ही बातो में वह उसे उसका पवरिचय वह जाति के बारे में पुछाने लगा | उसके कपडे को देख कर रिक्सा चालक ने यह सोचा की यह लड़का ऊची जाति का होगा | तो उसने भीम राव को डाटते फटकारते हुए तुरंत अपने रिक्से से उसे नीचे उतार दिया | कुछ देर बार वह रिक्सा वाला भीम राव से बोला कि उम अछूत होकर मेरे रिक्से में बैठे हो तुझे इसका दंड मै दूंगा जरुर |

अब तू यहाँ रिक्सा खीचेगा और मै अपने घर तक जाऊँगा, अब मै तुझसे रिक्सा का किराया भी वसूल करूँगा | इतना कह कर रिक्से वाला रिक्से के पिछली सिट पर बैठ गया | रिक्से वाले के गुस्से से आकर बालक भीम राव क्रोध से रिक्सा खीचने लगा |बालक भीम राव ने यह महसूस किया की उनकी आवाज सुनकर अपवित्र हो जाते है शहर की ऊची जाति के लोग उनकी आवाज सुन कर वह अपवित्र हो जाते है और यदि किसी स्वर्ण को छू ले तो वह अपवित्र हो जाते है | कई बार नहाने के बाद भी इन लोगो के शरीर के अपवित्रता मिट पाती है |

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